प्रज्ञा ठाकुर का ही नहीं, गोडसे से आरएसएस का
पुराना मोह है : इंतज़ार करें कब इस की मूर्ती संसद भवन में प्रतिष्ठित की जाएगी!
हमारे देश
में तवलीन सिंह जैसे 'भोले-भाले' राजनैतिक विश्लेषकों/पत्रकारों की कमी नहीं है जो
प्रधान मंत्री, मोदी के नेतर्त्व में आरएसएस/भाजपा शासकों के जनता और देश विरोधी विघटनकारी
विचारों और कार्यकलापों के प्रति सजग हो उठे हैं। यह अच्छी बात है। हालांकि सच यह है की हिन्दुत्वादी शासकों की टोली
जो खिलवाड़ प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र और इस की जनता के साथ आज कर रही है
वे आरएसएस की पुरानी हिन्दुत्वादी नीतियों का ही अनुसरण है। मोदी के प्रधान मंत्री
बनने के बाद (जिस पद को ग्रहण करते हुवे उन्हों ने देश के प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष
ढांचे को सुरक्षित रखने की शपथ ली थी), उनकी जुमले-बाज़ियों से अर्जित की गयी लोकप्रियता
के सहारे आरएसएस के राष्ट्र विरोधी मूल एजन्डे को देश पर थोपने में काफ़ी तेज़ी आयी है।
एक ताज़ातरीन
उधारण मालेगांव बम धमाकों में नामजद आरोपी प्रज्ञा ठाकुर का है जिन्हों ने अब संसद
के भीतर गांधीजी के हत्यारे, गोडसे को 'देशभक्त' बताया। यह वही साध्वी हैं जिन्हें
आरएसएस/भाजपा ने संसदीय चुनाव 2019 में भोपाल से खड़ा किया था। प्रचार के दौरान भी इस
गोडसे भक्त ने इस हत्यारे को 'देशभक्त' बताया था। इन के इस ब्यान पर मोदी ने नाराज़गी
जताई थी और कहा था की वे प्रज्ञा को ऐसा कहने के लिए माफ़ नहीं करेंगे। प्रधान मंत्री
मोदी ऐसा कहते हुवे फिर एक बार केवल जुमलेबाज़ी कर रहे थे, इस का पता भी जल्द ही चल
गया। प्रज्ञा को लोक सभा की एक अति महत्पूर्ण समिति (रक्षा मामलों की समिति) में भाजपा
की और सदस्य मनोनीत किया गया।
इस ख़ौफ़नाक
यथार्थ को झुटलाना मुश्किल है कि देश में हिंदुत्व राजनीती के उभार के साथ गांधीजी
की हत्या पर ख़ुशी मनाना और हत्यारों का महामंडन, उनहैं भगवन का दर्जा देने का भी एक
संयोजित अभियान चलाया जा रहा है। गांधीजी की शहादत दिवस (जनवरी 30) पर गोडसे की याद
में सभाएं की जाती हैं, उसके मंदिर जहाँ उसकी मूर्तियां स्थापित हैं में पूजा की जाती
है। गांधीजी की हत्या को 'वध' (जिसका मतलब राक्षसों की हत्या है) बताया जाता है।
यह सब कुछ
लम्पट हिन्दुत्वादी संगठनों या लोगों दुवारा ही नहीं किया जा रहा है। मोदी के प्रधान मंत्री बनने के कुछ ही महीनों में
रएसएस/भाजपा के एक वरिष्ठ विचारक, साक्षी जो संसद सदस्य भी हैं ने गोडसे को 'देश-भक्त'
घोषित करने की मांग की। हालांकि उनको यह मांग विश्वव्यापी भर्त्स्ना के बाद वापिस लेनी
पड़ी लेकिन इस तरह का विभत्स प्रस्ताव हिन्दुत्वादी शासकों की गोडसे के प्रति प्यार
को ही दर्शाती है।
इस सिलसिले
में गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के महामण्डन की सब से शर्मनाक घटना जून 2013 में गोवा में घाटी।यहाँ
पर भाजपा कार्यकारिणी की बैठक थी जिस में गुजरात के मुखयमंत्री मोदी को 2014 के संसदीय
चनाव के लिए प्रधान मंत्री पद का प्रतियाशी चुना गया। इसी दौरान वहां हिन्दुत्वादी संगठन 'हिन्दू जनजागृति
समिति' जिस पर आतंकवादी कामों में लिप्त होने के गंभीर आरोप हैं का देश को हिन्दू राष्ट्र
बनाने के लिए अखिल भारत सम्मलेन भी हो रहा था। इस सम्मलेन का श्रीगणेश मोदी के शुभकामना
सन्देश से जून 7, 2013 को हुवा। मोदी ने अपने सन्देश में इस संगठन को "राष्ट्रीयता,
देशभक्ति एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण" के लिए बधाई दी।
इसी मंच से
जून 10 को हिंदुत्व संगठनों, विशेषकर आरएसएस के क़रीबी लेखक के वी सीतारमैया का भाषण
हुवा इस ने आरम्भ में ही घोषणा की कि "गाँधी भयानक दुष्कर्मी और सर्वाधिक पापी
था"। सीतारमैया ने अपने भाषण का अंत इन
शर्मनाक शब्दों से किया:
"जैसा
की भगवन श्री कृष्ण ने कहा है-'दुष्टों के विनाश के लिए, अच्छों की रक्षा के लिए और
धर्म की स्थापना के लिए, में हर युग में पैदा होता हूँ' 30 जनवरी की शाम, श्री राम,
नाथूराम गोडसेके रूप में आए और गाँधी का जीवन समाप्त कर दिया"।
याद रहे आरएसएस
की विचारधारा का वाहक यह वही वयक्ति है जिस ने अंग्रेजी में Gandhi was Dharma
Drohi & Desa Drohi (गाँधी धर्मद्रोही और देशद्रोही था) शीर्षक से पुस्तक भी लिखी
है जो गोडसे को भेंट की गयी है।
शहीद गाँधी
जिन्हों ने एक आज़ाद प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की थी और उस प्रतिबद्धता
के लिए उन्हें जान भी गंवानी पड़ी थी, हिन्दुत्वादी
संगठनों के राजनितिक उभार के साथ एक राक्षसिये चरित्र के तौर पर पेश किए जा रहे हैं।
नाथूराम गोडसे और उसके अन्य साथी हत्यारों ने गांधीजी की हत्या जनवरी 30, 2018 को की
थी लेकिन 71 साल के बाद भी उनके 'वध' का जशन जरी और हत्यारों का गुणगान जरी है । इस
बार यह जश्न संसद के भीतर हो रहा है और इस की शुरुआत आरएसएस/भाजपा की एक नामी और कर्मठ
साध्वी ने की है जिन्हों ने अपने हिन्दुत्वादी जीवन-यात्रा आरएसएस के छात्र संगठन,
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से की थी। देखना यह है की कितनी जल्दी गोडसे को 'भारत
रत्न' से नवाज़ा जाता है और नए बनाये जारहे संसद भवन में इन की मूर्ती स्थापित की जाती
है!
गोडसे का
गुणगान करके आरएसएस और उस से जुड़े लोग तो वही कर रहे हैं जो उन्हों ने करना था, लेकिन
इस मामले में सब से शर्मनाक भूमिका गांधीवादी उन मठाधीशों के है जो गाँधी जी के नाम
पर स्थापित विशाल आश्रमों और बड़ी संस्थाओं के मालिक हैं। यह गांधीवादी ज़रूर आत्मा के
होने में विश्वास करते हैं, और किसी से तो उम्मीद नहीं, शायद गाँधी ही इनका कुछ इलाज
करें।
शम्सुल
इस्लाम
November
28, 2019
एस. इस्लाम के अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, मराठी, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, पंजाबी, गुजराती में लेखन और कुछ वीडियो
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