Thursday, June 25, 2020

भारत में आपातकाल घोषणा की 45वीं वर्षगांठ: आपातकाल में आरएसएस दुवारा इंदिरा गाँधी की बंदगी


भारत में आपातकाल घोषणा की 45वीं वर्षगांठ:
आपातकाल में आरएसएस दुवारा इंदिरा गाँधी की बंदगी
(आपातकाल के दौरान आरएसएस के मुखिया दुवारा इंदिरा गाँधी को लिखे गए माफ़ीनामों की मूल प्रतियों के साथ)
विश्व में झूठ बोलने और इतिहास को तोड़-मोड़ने का प्रशिक्षण देने वाले सब से बड़े गुरुकुल, आरएसएस से स्नातक हुए, राम माधव (जो अब आरएसएस-भाजपा सरकार के प्रमुख नीति-निर्धारकों में से एक हैं) ने भारत में 1975 में आपातकाल राज की 45वीं बरसी पर यह दवा किया है की देश में प्रजातंत्र बचा हुवा है कियोंकी "सरकार चला रहे नेता [आरएसएस-भाजपा से जुड़े] उनमें से हैं जिन्हों ने [आपातकाल के ख़िलाफ़] आज़ादी की लड़ाई लड़ी। वे उदारवादी प्रजातान्त्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित हैं, किसी मजबूरी की वजह से नहीं बल्कि एक धर्मसिद्धान्त के तौर पर।" ये दोनों दावे सफ़ेद झूट हैं क्योंकि आरएसएस-भाजपा राज में एक तरह से अघोषित आपातकाल लागू है जिसका शिकार, आम लोग, राजनैतिक/सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, मज़दूर/छात्र/महिला/शिक्षक/किसान संगठन, दलित, अल्प-सांखियक समुदाय, यहाँ तक कि अदालतें भी हो रही हैं। विश्व में प्रजातंत्र को मापने के जो माप-दंड हैं उन के अनुसार मोदी राज में भारत की गिनती तानाशाही वाले देशों के साथ की जा रही है। 
यह बिला वजह नहीं है। आरएसएस से जुड़े मौजूदा भारत के शासकों की रगों में तानाशहों वाला खून दौड़ता है और इस का श्रेय आरएसएस के सब से अहम दार्शनिक गोलवलकर को जाता है। यह वही गुरु गोलवलकर हैं जिन्हें 'नफ़रत का गुरु' भी कहा जाता है। यही वह गुरु भी हैं जिन्हें मोदी जी अपने आप को एक कुशल राजनैतिक नेता में ढलने का श्रेय भी देते हैं। गोलवालकर ने 1940 में ही आरएसएस के 1350 उच्चस्तरीय कार्यकर्ताओं के सामने भाषण करते हुए घोषणा कर दी थी कीः
 "एक ध्वज के नीचे, एक नेता के मार्गदर्शन में, एक ही विचार से प्रेरित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व की प्रखर ज्योति इस विशाल भूमि के कोने-कोने में प्रज्जवलित कर रहा है।"
याद रहे कि एक झण्डा, एक नेता और एक विचारधारा का यह नारा सीधे यूरोप की नाजी एवं फ़ासिस्ट पार्टियों, जिनके नेता क्रमशः हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाह थे, के कार्यक्रमों से लिया गया था।
भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25-26 जून, 1975 को देश में आंतरिक आपातकाल घोषित किया था। यह 19 महीने तक लागू रहा। इस दौर को भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में काले दिनों के रूप में याद किया जाता है। इंदिरा गांधी का दावा था कि जयप्रकाश नारायण ने सशस्त्र बलों से कहा था कि कांग्रेस शासकों के 'अवैध' आदेशों को नहीं मानें। इसने देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दी और भारतीय गणतंत्र का अस्तित्व खतरे में पड़ गया था। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित करने के अतिरिक्त कोर्इ विकल्प नहीं रह गया था।
     आरएसएस का दावा है कि उसने इंदिरा गंधी द्वारा घोषित आपातकाल  का बहादुरी के साथ मुकाबला किया और भारी दमन का सामना किया। बहरहाल, उस दौर के अनेक कथानक हैं, जो आरएसएस के इन दावों को झुठलाते हैं। यहां हम ऐसे दो दृष्टांतों का उल्लेख कर रहे हैं। इनमें से एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार और विचारक प्रभाश जोशी हैं और दूसरे, पूर्व खुफिया ब्यूरो (आईबी) प्रमुख टीवी राजेश्वर हैं, जिनके द्वारा बतार्इ घटनाओं का जिक्र हम यहां करेंगे। आपातकाल जिस समय घोषित किया गया था राजेश्वर आईबी के उप प्रमुख थे। राजेश्वर ने आपातकाल काल (जिसे राज्य का नंगा आतंकवाद कहना सही होगा) के उस दौर के बारे में बताया है किस तरह से आरएसएस ने इंदिरा गांधी के दमनकारी शासन के सम्मुख घुटने टेक दिए थे और इंदिरा गांधी एवं उनके पुत्र संजय गांधी को 20-सूत्रीय कार्यक्रम पूरी वफ़ादारी के साथ लागू करने का आश्वासन था। आएसएस के अनेक 'स्वयंसेवक' 20-सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने के रूप में माफिनामें पर दस्तख़त कर जेल से छूटे थे।
     इन तमाम गद्दारियों के बावजूद, ये आरएसएस वाले आपातकाल के दौरान उत्पीड़न के एवज में आज मासिक पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। भाजपा शासित राज्यों, जैसे कि- गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में उन लोगों को 10,000 रुपये मासिक पेंशन देने का फैसला लिया गया है जिन्हें आपातकालीन अवधि के दौरान एक महीने से कम समय तक जेल में रखा गया था। और आरएसएस से जुड़े जो लोग इस दौरान 2 माह से कम अवधि के जेल गए थे उन्हें बतौर 20000 रुपये पेंशन देना तय किया गया है। इस नियम में उन 'स्वयंसेवकों' का ख्याल रखा गया है, जिन्होंने केवल एक या दो महीने जेल में रहने के बाद घबरा कर दया याचिका पेश करते हुए माफीनामे पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इस पेंशन के लिए ऐसी कोर्इ शर्त नहीं है कि लाभार्थी आपातकाल के पूरे दौर में जेल में रहा हो।
     खास बात यह है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ़ देश की आज़ादी के आंदोलन में जेल में रहने वालों को मिलने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन पाने वालों में से एक भी आरएसएस का 'स्वयंसेवक' नहीं है। यहां एक तथ्य गौरतलब है कि उन सैकड़ों कम्युनिस्ट युवकों का किसी को ख्याल तक नहीं है जिन्हें आपातकाल के इस दौर में नक्सलपंथी कह कर फर्जी मुठभेड़ों मे मार दिया गया था। यहां एक और रोचक तथ्य है कि आरएसएस के हिंदुत्व सह
-यात्री शिवसेना ने खुले आम आपातकाल का समर्थन किया था।
     प्रभाश जोशी का लेख अंग्रेजी साप्ताहिक 'तहलका' में आपातकाल की 25 वीं वर्षगांठ पर छपा थाi उनके अनुसार आरएसएस के आपातकाल विरोधी संघर्ष में सहभागिता को लेकर उस दौर में भी "मन ही मन हमेशा एक किस्म का संदेह, उसे के साथ कुछ दूरी, विश्वास के कमी" का भाव था। उन्होंने आगे बताया,
"उस समय के आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने संजय गांधी के कुख्यात 20-सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने में सहयोग  करने हेतु इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखा था। यह है आरएसएस का असली चरित्र...आप उनके काम करने के अंदाज़ और तौर तरीकों को देख सकते हैं। यहां तक कि आपातकाल के दौरान, आरएसएस और जनसंघ के अनेक लोग माफीनामा देकर जेलों से छूटे थे। माफी मांगने में वे सबसे आगे थे। उनके नेता ही जेलों में रह गए थे: अटल बिहारी वाजपेयी, एल के आडवाणी, यहां तक कि अरुण जेटली। आरएसएस ने आपातकाल लागू होने के बाद उसके खिलाफ किसी प्रकार का कोर्इ संघर्ष नहीं किया। तब, भाजपा आपात काल के खिलाफ संघर्ष की याद को अपनाने की कोशिश क्यों कर रही है?"
प्रभाश जोशी के निष्कर्ष के अनुसार, "वे कभी संघर्षशील शक्ति न तो रहे हैं न ही वे कभी संघर्ष के प्रति उत्सुक रहनों वालों में से हैं। वे बुनियादी तौर पर समझौता परस्त रहे हैं। वे कभी भी सही मायने में सरकार के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वालों में नहीं रहे है।"
टी
.वी. राजेश्वर सेवानिवृत्ति के बाद उत्तर प्रदेश और सिक्किम के राज्यपाल रहे हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक 'इंडिया: द क्रूशियल यिर्ज़' (हार्पर कॉलिन्स) में, इस तथ्य की पुष्टि की है कि "वह (आरएसएस) न केवल इसका (आपातकाल) का समर्थन कर रहा था, वह श्रीमती गांधी के अलावा संजय गांधी के साथ संपर्क स्थापित करना चाहता था।"ii राजेश्वर ने मशहूर पत्रकार, करन थापर के साथ एक मुलाकात में खुलासा किया कि देवरस ने " गोपनीय तरीके से प्रधानमंत्री आवास के साथ संपर्क बनाया और देश में अनुशासन लागू करने के लिए सरकार ने जो सख़्त कदम उठाए थे उनमें से कर्इ का मजबूती के साथ समर्थन किया था। देवरस श्रीमती गांधी और संजय से मिलने के इच्छुक थे। लेकिन श्रीमती गांधी ने इनकार कर दिया।"
     राजेश्वर की पुस्तक के अनुसार, "आरएसएस, एक दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन, आपातकाल के समय इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन इसके प्रमुख बाला साहेब देवरस...ने लागू आदेशों और देश में अनुशासन को लागू करने के लिए सरकार के अनेक आदेशों का मजबूती के साथ समर्थन किया था। संजय गांधी के परिवार नियोजन अभियान और इसे विशेष रूप से मुसलमानों के बीच लागू करने के प्रयासों का देवरस का भरपूर समर्थन हासिल था।"
राजेश्वर ने यह तथ्य भी साझा किया है कि आपातकाल के बाद भी "संघ (आरएसएस) ने आपातकाल के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को अपना समर्थन विशेष रूप से व्यक्त किया था।" यह खास तौर पर गौरतलब है कि सुब्रमण्यम स्वामी जो अब आरएसएस के प्यादे हैं के अनुसार भी आपातकाल की अवधि में, आरएसएस के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष के साथ गद्दारी की थी।
आरएसएस अभिलेखागार में समकालीन दस्तावेज प्रभाष जोशी और राजेश्वर के कथन की सत्यता प्रमाणित करते हैं। आरएसएस के तीसरे सरसंघचालक, मधुकर दत्तात्रय देवरस ने आपातकाल लगने के दो महीने के भीतर इंदिरा गांधी को पहला पत्र लिखा था। यह वह समय था जब राजकीय आतंक चरम पर था। देवरस ने अपने पत्र दिनांक 22 अगस्त, 1975 की शुरुआत ही इंदिरा की प्रशंसा के साथ इस तरह की:

"मैंने 15 अगस्त, 1975 को रेडियो पर लाल किले से देश के नाम आपके संबोधन को जेल (यारवदा जेल) में सुना था। आपका यह संबोधन संतुलित और समय के अनुकूल था। इसलिए मैंने आपको यह पत्र लिखने का फैसला किया।"

इंदिरा गांधी ने देवरस के इस पत्र को जवाब नहीं दिया। देवरस ने 10 नवंबर, 1975 को इंदिरा को एक और पत्र लिखा। इस पत्र की शुरुआत उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दिए गए निर्णय के लिए बधार्इ के साथ की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनको चुनाव में भ्रष्ट साधनों के उपयोग का दोषी मानते हुए पद के अयोग्य करार दिया था। देवरस ने इस पत्र में लिखा,

"सुप्रीम कोर्ट के सभी पांच न्यायाधीशों ने आपके चुनाव को संवैधानिक घोषित कर दिया है, इसके लिए हार्दिक बधाई।" गौरतलब है कि विपक्ष का दृढ़ मत था कि यह निर्णय कांग्रेस के द्वारा 'मैनेज्ड' था। देवरस ने अपने इस पत्र में यहां तक कह दिया कि "आरएसएस का नाम जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के साथ अन्यथा जोड़ दिया गया है। सरकार ने अकारण ही गुजरात आंदोलन और बिहार आंदोलन के साथ भी आरएसएस को जोड़ दिया है...संघ का इन आंदोलनों से कोई संबंध नहीं है ..."

इंदिरा गांधी ने क्योंकि देवरस के इस पत्र का भी जवाब नहीं दिया, आरएसएस प्रमुख ने विनोबा भावे के साथ संपर्क साधा, जिन्होंने आपातकाल का आध्यात्मिक समर्थन और इंदिरा गांधी का पक्ष लिया था। देवरस ने अपने पत्र दिनांक 12 जनवरी, 1976 में, आचार्य विनोबा भावे से गिड़गिड़ाते हुए आग्रह किया कि आरएसएस पर प्रतिबंध हटाए जाने के लिए वे इंदिरा गांधी को सुझाव दें।ix  आचार्य विनोबा भावे ने भी पत्र का जवाब नहीं दिया, हताश देवरस ने तो उन्हों ने एक और पत्र लिखा जिस पर तिथि भी अंकित नहीं है उन्होंने लिखा:
                                                                 
"अखबारों में छपी सूचनाओं के अनुसार प्रधान मंत्री (इंदिरा गांधी) 24 जनवरी को वर्धा पवनार आश्रम में आपसे मिलने आ रही हैं। उस समय देश की वर्तमान परिस्थिति के बारे में उनकी आपके साथ चर्चा होगी। मेरी आपसे याचना है कि प्रधानमंत्री के मन में आरएसएस के बारे में जो गलत धारणा घर कर गर्इ है आप कृपया उसे हटाने की कोशिश करें ताकि आरएसएस पर लगा प्रतिबंध हटाया जा सके और जेलों में बंद आरएसएस के लोग रिहा होकर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में प्रगति और विकास में सभी क्षेत्रों में अपना योगदान कर सकें।"
                                                            
आरएसएस को आपातकाल के मुजरिमों को गले लगाने में भी कोई एतराज़ नहीं रहा है।  भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 2018 में स्वयंसेवकों के दीक्षा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। प्रणब मुखर्जी की गिनती आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों के लिए जिम्मदार सर्वोच्च कांग्रेसी नेताओं में होती है और शाह आयोग ने भी आपातकाल की  ज़्यादतियों के लिए उन्हें प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार  माना था। आरएसएस के प्रधान कार्यालय पर प्रणब का सत्कार करते हुवे ज़ाहिर है आरएसएस को किसी भी तरह की लज्जा नहीं आयी। आरएसएस की त्रासदी यह है कि भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी तक क़ायम है। यही उसकी विवशता है। हालांकि वह नग्न तानाशाही का कट्टर हिमायती है परंतु उसे अपनी इस असलियत को छुपाने के लिए मुखौटे लगाने पड़ते हैं।
शम्सुल इस्लाम
25
जून, 2020
शम्सुल इस्लाम के अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, मराठी, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, पंजाबी, गुजराती में लेखन और कुछ वीडियो साक्षात्कार/बहस के लिए देखें :
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ON 45TH ANNIVERSARY OF THE EMERGENCY IN INDIA: CONTEMPORARY DOCUMENTS PROVE RSS LEADERSHIP KOWTOWED TO INDIRA GANDHI


ON 45TH ANNIVERSARY OF THE EMERGENCY IN INDIA:  CONTEMPORARY DOCUMENTS PROVE RSS LEADERSHIP KOWTOWED TO INDIRA GANDHI

RSS is a Hindutva gurukul (university) that specializes in training cadres in speaking lies and manufacturing history. As a latest proof, we find on the 45th anniversary of the Emergency, an ideologue of RSS, Ram Madhav, a prominent graduate of the above gurukul, claiming that Indian democracy survives due to "leaders in the government who fought for that very freedom and are committed to liberal democratic values, not just as a matter of compulsion but as an article of faith."[i] His take is that RSS-BJP leaders fought against the Emergency not due to any compulsion but as article of faith in democracy. Both the claims are white lies, not because many of the critics show but even as per the contemporary RSS documents available.
Let us take first, the claim that the RSS-BJP rulers are/have been committed to the liberal democratic values as a faith. The most prominent ideologue of the RSS, MS Golwalkar, also known as 'Guru of Hate' [whom PM Modi credits for grooming him into a political leader] while addressing the 1350 top level cadres of the RSS in 1940 declared, "RSS inspired by one flag, one leader and one ideology is lighting the flame of Hindutva in each and every corner of this great land."[ii]
With such a philosophical liking for totalitarianism the RSS hated sharing of power. It could be seen in its strong opposition to the federal structure of the constitution, a ‘Basic’ feature of the India polity. Golwalkar declared in 1961, "Today’s federal form of government not only gives birth but also nourishes the feelings of separatism, in a way refuses to recognize the fact of one nation and destroys it. It must be completely uprooted, constitution purified and unitary form of government be established."[iii]
So far Emergency is concerned the RSS claim of fighting against it needs to be evaluated in the light of contemporary narratives including the RSS documents. In this connection two narratives one by a veteran thinker and journalist of India, Prabhash Joshi and the other by TV Rajeswar, former Intelligence Bureau [IB] chief  who was the deputy chief of IB during the Emergency are of immense importance. They recounted the days of Emergency (or state terrorism) when RSS surrendered to the repressive regime of Indira Gandhi, assured her and her son, Sanjay Gandhi to enforce faithfully the draconian 20-point programme announced by the Emergency regime. Large number of RSS cadres came out of jails by submitting MAAFINAMAAS (mercy petitions).
The narrative by Prabhash Joshi appeared in the English weekly TEHELKA on the 25th anniversary of the Emergency.[iv] According to him even during the Emergency "there was always a lurking sense of suspicion, a distance, a discreet lack of trust" about RSS' joining the anti-Emergency struggle. He went on to tell that
"Balasaheb Deoras, then RSS chief, wrote a letter to Indira Gandhi pledging to help implement the notorious 20-point programme of Sanjay Gandhi. This is the real character of the RSS...You can decipher a line of action, a pattern. Even during the Emergency, many among the RSS and Jana Sangh who came out of the jails, gave mafinamas. They were the first to apologise. Only their leaders remained in jail: Atal Behari Vajpayee [most of time in hospital], LK Advani, even Arun Jaitley. But the RSS did not fight the Emergency. So why is the BJP trying to appropriate that memory?"
Prabhash Joshi's conclusion was that "they are not a fighting force and they are never keen to fight. They are basically a compromising lot. They are never genuinely against the government".
TV Rajeswar, who served as Governor of Uttar Pradesh and Sikkim penned a book, 'India: The Crucial Years” [Harper Collins] corroborated the fact that "Not only they (RSS) were supportive of this [Emergency], they wanted to establish contact apart from Mrs Gandhi, with Sanjay Gandhi also".[v] Rajeswar in an interview with Karan Thapar disclosed that Deoras,
"quietly established a link with the PM's house and expressed strong support for several steps taken to enforce order and discipline in the country. Deoras was keen to meet Mrs. Gandhi and Sanjay. But Mrs. Gandhi refused."[vi]
According to Rajeswar's book,
“RSS, a right-wing Hindu nationalist organisation, was banned in the wake of the Emergency. But its chief, Balasaheb Deoras, quietly established a link with the PM’s house and expressed strong support to several steps taken to enforce order and discipline in the country. Sanjay Gandhi’s concerted drive to enforce family planning, particularly among Muslims, had earned Deoras’s approbation.”[vii]
Rajeswar also shared the fact that even after Emergency the "organization (RSS) had specifically conveyed its support to the Congress in the post-emergency elections."[viii] It will be interesting to note that even according to Subramanian Swamy during the Emergency period, most of the senior leaders of RSS had betrayed the struggle against the Emergency.[ix]
The contemporary documents in the RSS archives prove the narratives of Prabhash Joshi and Rajeswar truthful. The 3rd Supremo of RSS, Madhukar Dattatraya Deoras wrote the first letter to Indira Gandhi within two months of the imposition of Emergency. It was the time when state terror was running amok. In letter dated, August 22, 1975 he began with the following praise of Indira:
"I heard your address to the nation which you delivered on August 15, 1975 from Red Fort on radio in jail [Yervada jail] with attention. your address was timely and balanced so I decided to write to you".[x]
Indira Gandhi did not respond to it. So Deoras wrote another letter to Indira on November 10, 1975. He began his letter with congratulating her on being cleared by the Supreme Court of disqualification which was ordered by the Allahabad High Court, "All the five Justices of the Supreme Court have declared your election constitutional, heartiest greetings for it." It is to be noted that opposition was firmly of the opinion that this judgment was 'managed' by the Congress. In the course of the letter he declared that "RSS has been named in context of Jaiprakash Narayan's movement. The government has also connected RSS with Gujarat movement and Bihar movement without any reason...Sangh has no relation with these movements..."[xi]
Since Indira Gandhi did not respond to this letter also, RSS chief got hold of Vinoba Bhave who supported the Emergency religiously and was a favourite of Indira Gandhi. In a letter dated January 12, 1976, he begged that Acharya should suggest the way that ban on RSS was removed.[xii]  Since Acharya too did not respond to Deoras letter, the latter in another letter without date wrote in desperation,
"According to press reports respected PM [Indira Gandhi] is going to meet you at Pavnar Ashram on January 24. At that time there will be discussion about the present condition of the country. I beg you to try to remove the wrong assumptions of PM about RSS so that ban on RSS is lifted and RSS members are released from jails. We are looking forward for the times when RSS and its members are able to contribute to the plans of progress which are being run in all the fields under the leadership of PM."[xiii]
All these letters in Hindi are being reproduced from a publication of the RSS at the end of this article.
It is to be noted that former President of the Indian Republic, Pranab Mukherjee was invited by the RSS chief, Mohan Bhagwat as the chief guest at the graduation ceremony of its new recruits must be working over-time to convert India into a Hindu state. Pranab Mukherjee was indicted as one of the top leaders of Congress for Emergency excesses. The tragedy of RSS is that India continues to be run under a democratic polity so its love for brazen power has to be balanced by playing double-game.
It is shameful that despite these facts thousands of RSS cadres continue to get monthly pension for the persecution during Emergency. The BJP ruled states like Gujarat, Madhya Pradesh, Rajasthan and Maharashtra decided to award a monthly pension of Rs 20,000 to those who were jailed during the Emergency period for less than 2 month and Rs 10000 to those who were jailed for less than a month. This rule took care of the financial interest of those RSS cadres who submitted mercy letters completing only one or two months' jail term. For securing such a fat pension there was no such condition that the beneficiary should have been in jail for the whole period of the Emergency.
Interestingly, in the case of anti-British freedom struggle there has not been even a single RSS cadre to claim the freedom fighter pension. It may be noted that nobody remembers hundreds of Communist youth, branded as Naxals who were killed in fake encounters during the Emergency. Interestingly, Shiv Sena, the Hindutva co-traveler of the RSS openly supported the Emergency.

Shamsul Islam
June 25, 2020.
notoinjustice@gmail.com
For some of S. Islam's writings in English, Hindi, Marathi, Malayalam, Kannada, Bengali, Punjabi, Urdu & Gujarati see the following link:
Facebook: shams shamsul
Twitter: @shamsforjustice


[i] https://indianexpress.com/article/opinion/columns/when-democracy-was-shackled-ram-madhav-6474726/
[ii] Golwalkar, MS, Shri Guruji Samagar Darshan (collected works of Golwalkar in Hindi), Bhartiya Vichar Sadhna, Nagpur, nd., vol. I, p. 11.

[iii] Ibid. vol. III, p. 128.
[iv] http://archive.tehelka.com/story_main13.asp?filename=op070205And_Not_Even.asp

[v] https://www.indiatoday.in/india/story/rss-backed-indira-gandhis-emergency-ex-ib-chief-264127-2015-09-21
[vi] Ibid.
[vii] https://indianexpress.com/article/india/india-others/ib-ex-chiefs-book-rss-chief-deoras-had-backed-some-emergency-moves/
[viii] https://timesofindia.indiatimes.com/india/RSS-backed-Emergency-reveals-former-IB-chief/articleshow/49052143.cms
[ix] https://medium.com/@hindu.nationalist1/double-game-of-senior-rss-leaders-during-emergency-74abc07a4fa8
[x] Madhukar Dattatraya Deoras, Hindu Sangathan aur Sattavaadi Rajneeti, Jagriti Prkashan, Noida, 1997, 270.
[xi] Ibid., 272-73
[xii] Ibid. 275-77.
[xiii] Ibid. 278.