राष्ट्रीय तिरंगा झण्डा और आरएसएस की धोखाधड़ी
आरएसएस-भाजपा
शासकों ने भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘हर घर तिरंगा’ नारा देकर
देशवासियों से राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा फहराने
का आह्वान किया है।
देशभक्त
भारतीयों को यह नहीं भूलना चाहिए कि हिंदुत्ववादी शासक भारत की
लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष-समतावादी व्यवस्था को एक धार्मिक हिंदू राज्य में बदलने
की अपनी घृणित राष्ट्र-विरोधी परियोजना को छिपाने के लिए तिरंगे का इस्तेमाल कर
रहे हैं। अगर हम यह जान लें कि आरएसएस ने तिरंगे का अपमान कैसे किया और कर रहे हैं, तो उनकी असली परियोजना को समझना मुश्किल नहीं होगा।
स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर जब दिल्ली के लाल किले से तिरंगे झण्डे को लहराने की तैयारी चल रही थी आरएसएस ने अपने अंग्रेज़ी मुखपत्र (आर्गनाइज़र) के 14 अगस्त सन् 1947 वाले अंक में राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर तिरंगे के चयन की खुलकर भर्तसना करते हुए लिखाः
“वे लोग जो किस्मत के दांव से सत्ता तक पहुंचे हैं वे भले ही हमारे हाथों में तिरंगे को थमा दें, लेकिन हिंदुओं द्वारा न इसे कभी सम्मानित किया जा सकेगा न अपनाया जा सकेगा। तीन का आंकड़ा अपने आप में अशुभ है और एक ऐसा झण्डा जिसमें तीन रंग हों बेहद खराब मनोवैज्ञानिक असर डालेगा और देश के लिए नुक़सानदेय होगा।”
स्वतंत्रता के बाद जब तिरंगा झंडा राष्ट्रीय-ध्वज बन गया तब भी आरएसएस ने इसको स्वीकारने से मना कर दिया। गोलवलकर ने राष्ट्रीय झंडे के मुद्दे पर अपने लेख ‘निरुद्देश गति’ (1970)
में लिखाः
“उदाहरण स्वरूप, हमारे नेताओं ने हमारे राष्ट्र के लिए एक नया ध्वज निर्धारित किया है। उन्होंने ऐसा क्यों किया? यह पतन की ओर बहने तथा नक़लचीपन का एक स्पष्ट प्रमाण है। कौन कह सकता है कि यह एक शुद्ध तथा स्वस्थ्य राष्ट्रीय दृष्टिकोण है? यह तो केवल एक राजनीति की जोड़तोड़ थी, केवल राजनीतिक कामचलाऊ तत्कालिक उपाय था। यह किसी राष्ट्रीय दृष्टिकोण अथवा राष्ट्रीय इतिहास तथा परंपरा पर आधारित किसी सत्य से प्रेरित नहीं था। वही ध्वज आज कुछ छोटे से परिवर्तनों के साथ राज्य ध्वज के रूप में अपना लिया गया है। हमारा एक प्राचीन तथा महान राष्ट्र है, जिसका गौरवशाली इतिहास है। तब, क्या हमारा अपना कोई ध्वज नहीं था? क्या सहस्त्र वर्षों में हमारा कोई राष्ट्रीय चिन्ह नहीं था? निःसंदेह, वह था। तब हमारे दिमाग़ों में यह शून्यतापूर्ण रिक्तता क्यों? ”
[गोलवलकर,
विचार नवनीत, ज्ञान गंगा प्रकाशन (आरएसएस का प्रकाशन) 1996, प्रष्ठ 237-38]
तिरंगे
के प्रति आरएसएस की नफ़रत चिरस्थायी है। अगर आज़ादी की पूर्व संध्या पर इसका अपमान
किया गया था, तो हिंदुत्व गिरोह का यह
गुरु आज़ादी के 23 साल बाद भी इसके ख़िलाफ़ ज़हर फैलाता रहा। यह लेख आरएसएस ने
छापना बंद नहीं किया, पुस्तक के नवीनतम 2022 के संस्करण में ज्यों का त्यों मौजूद
है। देशभक्त भारतीयों को संयुक्त बलिदान और संघर्ष के इस प्रतीक के ख़िलाफ़
भड़काने में नाकाम आरएसएस, एक पेशावर धोखेबाज़
संस्था के रूप में, इसका इस्तेमाल
तब तक कर रहा है जब तक कि देश के लोग भारत की लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष-समतावादी
राजनीति को तहस-नहस करने के उसके राष्ट्र-विरोधी खेल का शिकार नहीं बन जाते।
देश कि आज़ादी की 79 वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रविरोधी आरएसएस गिरोह से सावधान
रहें!
शम्सुल इस्लाम
अगस्त 15, 2025
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