आरएसएस के शीर्ष नेतृत्व के वैचारिक, नैतिक, सामाजिक और राजनैतिक पतन की दास्तान: आरएसएस के
प्रचारक बलराज मधोक की ज़बानी
बलराज
मधोक (1920-2016) की 1963 में छपी आत्मकथा, ज़िंदगी का सफ़र-3-दीनदयाल उपाध्याय कि हत्या से इंद्रा गांधी कि हत्या तक, हर उस इंसान को पढ़ना ज़रूरी है जो आरएसएस के
राष्ट्र-समाज-इंसानियत विरोधी चरित्र को समझना चाहता है। आरएसएस
का यह दावा रहता है कि वे हिंदु धर्म/हिंदुओं के पुनर्जागरण और पुनरुत्थान के लिये
1925 में अस्तित्व में आया। इस के अनुसार आरएसएस हिंदुओं के लिये एक ऐसा अनोखा
इकलौता आदर्श संगठन है जो उन्हें आध्यात्मिक, नैतिक और भौतिक विकास के शिखर पर ले
जाना चाहता है ताकि दुनिया उन के सामने नतमस्तक हो। लेकिन सच इन दावों से कितना
भिन्न और शर्मनाक है इस का भरपूर अंदाज़ा आख़री सांस तक आरएसएस से जुड़े रहे
हिन्दुत्व के प्रमुख विचारकों में से एक, बलराज मधोक की आपबीती पढ़कर लगाया जा सकता
है। बलराज माधोक 1938 में आरएसएस के संपर्क में आये और 1942 में इसके प्रचारक
(पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बने और आख़री सांस लेने (मई 2, 2016) तक इस के सदस्य रहे। उन्हें आरएसएस की तरफ़ से राष्ट्रीय महत्व
कि ज़िम्मेदारियाँ दी गयीं। आरएसएस के प्रचारक बनते ही उन्हें जम्मू-कश्मीर रियासत
का ज़िम्मा दिया गया, श्यामा प्रसाद मुकर्जी के साथ मिलकर उन्हों ने आरएसएस के जेबी
राजनैतिक संगठन जनसंघ की 1951 में स्थापना की और उसके अध्यक्ष बने, आरएसएस के एक
और जेबी छात्र संगठन, अखिल भारतीय विद्यार्थी-परिषद की 1949 में स्थापना की, 1960 में गौ-हत्या विरोधी
आंदोलन को संगठित किया तथा आरएसएस की तरफ़ से पहली बार उन्हों ने 1968 में बाबरी
मस्जिद की जगह राम मंदिर बनाने की मांग की। 1969 में उन्हों ने देश के
अल्पसंखियाकों विशेषकर मुसलमानों के विवादस्पद ‘भारतीयकरण’ की अवधारणा पेश की।
आरएसएस को इतनी गहराई से जानने वाले बलराज मधोक ने जो इस के सब से महतपूर्ण विचारक माधव सदाशिव गोलवलकर से भी सीधे संपर्क में थे ने, ही आरएसएस के नेतृत्व के पतन के बारे में जो शर्मनाक जानकारियाँ दी हैं वे बहुत विचलित करने वाली हैं, इन्हें हमेशा छुपाया गया। बलराज मधोक की आप-बीती के अनुसार, आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व अय्याशी, आरएसएस के भीतेर हत्याओं और साज़िशों में लिप्त था। मधोक प्रत्यक्ष उदाहरण देकर बताते हैं कि आरएसएस के सरसंघचालक, गोलवलकर और बाला देवरस इन सब को रोकने के बजाये आरएसएस में मुजरिमों की टोली को संरक्षण देते रहे। मधोक पर यह इल्ज़ाम भी नहीं लगाया जा सकता कि उन्हों ने यह सब इस लिए लिखा क्योंकि उन्हें आरएसएस से निकाल दिया गया था। उन की मौत पर आरएसएस के तरफ़ से जारी निम्नलिखित ख़त इस बात की गवाही देता है कि मरते-दम तक आरएसएस से जुड़े थे। इस पत्र के आतिरिक्त बलराज मधोक की पुस्तक से ऐसे पन्ने यहाँ पेश हैं जिन्हें पढ़कर यह समझना जरा भी मुश्किल नहीं है कि आरएसएस इस देश के लोगों, ख़ासकर हिंदुओं के लिए कितना ख़तरनाक है। और अगर आरएसएस से जुड़ी इस पतित चरित्र वाली टोली इस देश पर राज कर रही है तो देश को सर्वनाश होने से कौन बच सकता है! पर क्या इस देश के लोग ऐसा होने देंगे!! [शम्सुल इस्लाम, 16-06-2022. ईमेल: notoinjustice@gmail.com]
बलराज मधोक के देहांत पर आरएसएस का शोक-प्रस्ताव इस सच्चाई को सिद्ध करता है कि वे
मरते-दम तक आरएसएस से जुड़े थे।
ज़िंदगी का सफ़र-3: दीनदयाल उपाध्याय कि हत्या से इंद्रा गांधी कि हत्या
तक DINMAN PRAKASHAN, CHARKHEWALAN, DELHI-110006. MOBILE: 98732 38067.
EMAIL: dinmanprakashan@gmail.com
दीनदयाल उपाध्याय कि हत्या करवाने वाले षड्यंत्रकारी आरएसएस-जनसंघ के ऊंचे पदों पर बैठे महत्वाकांक्षी और अपराधी परवर्ती के लोग थे। नाम जानकार आप चकित रह जायेंगे!
जनसंघ का केन्द्रीय दफ़्तर (30 राजेंद्र प्रसाद रोड, नई दिल्ली)
कैसे व्यभिचार का अड्डा बना। ये अय्याश कौन थे?
जब बलराज मधोक ने आरएसएस के सरसंघचालक, गोलवलकर से
शिकायत की तो उन्हों ने चुप रहने का आदेश दिया!
दीनदयाल उपाध्याय के आरएसएस से जुड़े क़ातिलों को सज़ा
दिलाने और नैतिक तौर पर पतित आरएसएस के बड़े नेताओं को निष्कासित करने की मांग
करने पर बलराज मधोक को कैसे जनसंघ (आरएसएस का भाजपा से पहले का राजनैतिक
संगठन) से निकाल गया।
लाल कृषण आडवाणी एक कठपुतली, बिना हड्डी का चमत्कार
आरएसएस का तीसरा सरसंघचालक बाल साहिब देवरस एक जीवन
सुविधा भोगी था जिस ने 1975 की राष्ट्रीय आपातकालीन स्तिथि की घोषणा के बाद
इंदिरा गांधी से बिनती।
आरएसएस ने किस तरह
जनता पार्टी से विश्वासघात किया।
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