Sunday, June 25, 2023

भारत में आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष से आरएसएस की ग़द्दारी की दास्तान: उस के अपने दस्तावेज़ों की ज़ुबानी!

 

भारत में आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष से आरएसएस की ग़द्दारी की दास्तान: उस के अपने दस्तावेज़ों की ज़ुबानी!

(आरएसएस के मुखिया, देवरस, दुवारा इंदिरा गाँधी को आपातकाल के समर्थन में लिखे गए पत्रों के मूल पाठ के साथ)


इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल की 48वीं वर्षगांठ पर [25 जून, 1975-मार्च 21, 1977] हम एक बार फिर आरएसएस के बेशर्मी से किये जा रहे इस दावे को सुन-पढ़ रहे हैं कि उसने पूरी ताकत से इसका विरोध किया था। पीएम मोदी ने 18 जून, 2023 को अपनी साप्ताहिक रेडियो वार्ता 'मन की बात' में इसे भारतीय इतिहास का "सबसे काला काल" बताया। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी एम
वेंकैया नायडू ने, जो भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति भी रहे हैं, दावा किया कि, "आपातकाल के खिलाफ विरोध संगठित  करने में आरएसएस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई”।

आरएसएस-भाजपा शासक दावा करते हैं कि आरएसएस ने आपातकाल के खिलाफ लड़ाई किसी मजबूरी के कारण नहीं बल्कि लोकतंत्र में आस्था के कारण लड़ी। आज भारत पर शासन करने वाले आरएसएस के कैडर किस प्रकार लोकतंत्र से प्रेम करते हैं, यह देखने और विश्वास करने योग्य है। जिन भारतीय जेलों में असामाजिक तत्वों को कैद किया जाना था, वे, प्रतिभाशाली स्कूल/विश्वविद्यालय के छात्रों (उनमें से बड़ी संख्या में लड़कियां) से लेकर 70-80 की आयु के गंभीर बीमारियों से पीड़ित वरिष्ठ नागरिकों,  पत्रकारों  और देश के प्रमुख बुद्धिजीवियों और युवा कार्यकर्ताओं से भरी हुई हैं। भारत के आरएसएस-भाजपा शासकों का सब से प्रिय शुग़ल राजनैतिक/सामाजिक, मज़दूर/छात्र/महिला/शिक्षक/किसान संगठन, दलित, अल्प-सांखियक समुदाय के कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न बन गया है।

वैश्विक लोकतंत्र की स्थिति पर प्रतिष्ठित विश्व अध्ययनों के अनुसार, वी-डेम इंस्टीट्यूट द्वारा जारी लोकतंत्र रिपोर्ट 2023 के लोकतंत्र सूचकांक में भारत 108वें स्थान पर है। देश तंज़ानिया, बोलीविया, मैक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे देशों से काफ़ी नीचे है। रिपोर्ट में पिछले 10 वर्षों में शीर्ष 10 निरंकुश देशों में भारत का नाम भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट के चुनावी लोकतंत्र सूचकांक (ईडीआई) में भारत की रैंकिंग 2022 में 100वें स्थान से गिरकर इस साल 108वें स्थान पर आ गई ।”

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (डब्ल्यूपीएफडी) (3 मई) पर, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2023 प्रकाशित किया गया था। भारत 36.62 स्कोर के साथ 180 देशों में 161वें स्थान पर है। 2022 में भारत की रैंक 150 थी.

यह बिला वजह नहीं है। आरएसएस से जुड़े मौजूदा भारत के शासकों की रगों में तानाशहों वाला खून दौड़ता है और इस का श्रेय आरएसएस के सब से अहम दार्शनिक गोलवलकर को जाता है। यह वही गुरु गोलवलकर हैं जिन्हें 'नफ़रत का गुरु' भी कहा जाता है। यही वह गुरु भी हैं जिन्हें मोदी जी अपने आप को एक कुशल राजनैतिक नेता में ढालने का श्रेय भी देते हैं। गोलवालकर ने 1940 में ही आरएसएस के 1350 उच्चस्तरीय कार्यकर्ताओं के सामने भाषण करते हुए घोषणा कर दी थी कीः

 "एक ध्वज के नीचे, एक नेता के मार्गदर्शन में, एक ही विचार से प्रेरित होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुत्व की प्रखर ज्योति इस विशाल भूमि के कोने-कोने में प्रज्जवलित कर रहा है।"

याद रहे कि एक झण्डा, एक नेता और एक विचारधारा का यह नारा सीधे यूरोप की नाजी एवं फ़ासिस्ट पार्टियों, जिनके नेता क्रमशः हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाह थे, के कार्यक्रमों से लिया गया था।

भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25-26 जून, 1975 को देश में आंतरिक आपातकाल घोषित किया था। यह 19 महीने तक लागू रहा। इस दौर को भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में काले दिनों के रूप में याद किया जाता है। इंदिरा गांधी का दावा था कि जयप्रकाश नारायण ने सशस्त्र बलों से कहा था कि कांग्रेस शासकों के 'अवैध' आदेशों को नहीं मानें। इसने देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर दी और भारतीय गणतंत्र का अस्तित्व खतरे में पड़ गया था। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित करने के अतिरिक्त कोर्इ विकल्प नहीं रह गया था।

     आरएसएस का दावा है कि उसने इंदिरा गंधी द्वारा घोषित आपातकाल  का बहादुरी के साथ मुकाबला किया और भारी दमन का सामना किया। बहरहाल, उस दौर के अनेक कथानक हैं, जो आरएसएस के इन दावों को झुठलाते हैं। यहां हम ऐसे दो दृष्टांतों का उल्लेख कर रहे हैं। इनमें से एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार और विचारक प्रभाश जोशी हैं और दूसरे, पूर्व खुफिया ब्यूरो (आईबी) प्रमुख टीवी राजेश्वर हैं, जिनके द्वारा बतार्इ घटनाओं का जिक्र हम यहां करेंगे।

     प्रभाश जोशी का लेख अंग्रेजी साप्ताहिक 'तहलका' में आपातकाल की 25 वीं वर्षगांठ पर छपा था में बताया:

"उस समय के आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने संजय गांधी के कुख्यात 20-सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने में सहयोग  करने हेतु इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखा था। यह है आरएसएस का असली चरित्र...आप उनके काम करने के अंदाज़ और तौर तरीकों को देख सकते हैं। यहां तक कि आपातकाल के दौरान, आरएसएस और जनसंघ के अनेक लोग माफीनामा देकर जेलों से छूटे थे। माफी मांगने में वे सबसे आगे थे। उनके नेता ही जेलों में रह गए थे: अटल बिहारी वाजपेयी, एल के आडवाणी, यहां तक कि अरुण जेटली। आरएसएस ने आपातकाल लागू होने के बाद उसके खिलाफ किसी प्रकार का कोर्इ संघर्ष नहीं किया। तब, भाजपा आपात काल के खिलाफ संघर्ष की याद को अपनाने की कोशिश क्यों कर रही है?"

टी.वी. राजेश्वर IB मुखिया के पद से सेवानिवृत्ति के बाद उत्तर प्रदेश और सिक्किम के राज्यपाल रहे हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक 'इंडिया: द क्रूशियल यिर्ज़' (हार्पर कॉलिन्स) में, इस तथ्य की पुष्टि की है कि "वह (आरएसएस) न केवल इसका (आपातकाल) का समर्थन कर रहा था, वह श्रीमती गांधी के अलावा संजय गांधी के साथ संपर्क स्थापित करना चाहता था।"ii राजेश्वर ने मशहूर पत्रकार, करन थापर के साथ एक मुलाकात में खुलासा किया कि देवरस ने " गोपनीय तरीके से प्रधानमंत्री आवास के साथ संपर्क बनाया और देश में अनुशासन लागू करने के लिए सरकार ने जो सख़्त कदम उठाए थे उनमें से कर्इ का मजबूती के साथ समर्थन किया था। देवरस श्रीमती गांधी और संजय से मिलने के इच्छुक थे। लेकिन श्रीमती गांधी ने इनकार कर दिया।"

राजेश्वर की पुस्तक के अनुसार, "आरएसएस, एक दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन, आपातकाल के समय इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन इसके प्रमुख बाला साहेब देवरस...ने लागू आदेशों और देश में अनुशासन को लागू करने के लिए सरकार के अनेक आदेशों का मजबूती के साथ समर्थन किया था। संजय गांधी के परिवार नियोजन अभियान और इसे विशेष रूप से मुसलमानों के बीच लागू करने के प्रयासों का देवरस का भरपूर समर्थन हासिल था।"

राजेश्वर ने यह तथ्य भी साझा किया है कि आपातकाल के बाद भी "संघ (आरएसएस) ने आपातकाल के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को अपना समर्थन विशेष रूप से व्यक्त किया था।" यह खास तौर पर गौरतलब है कि सुब्रमण्यम स्वामी जो अब आरएसएस के प्यादे हैं के अनुसार भी आपातकाल की अवधि में, आरएसएस के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष के साथ गद्दारी की थी।

आरएसएस अभिलेखागार में समकालीन दस्तावेज प्रभाष जोशी और राजेश्वर के कथन की सत्यता प्रमाणित करते हैं। आरएसएस के तीसरे सरसंघचालक, मधुकर दत्तात्रय देवरस ने आपातकाल लगने के दो महीने के भीतर इंदिरा गांधी को पहला पत्र लिखा था। यह वह समय था जब राजकीय आतंक चरम पर था। देवरस ने अपने पत्र दिनांक 22 अगस्त, 1975 की शुरुआत ही इंदिरा की प्रशंसा के साथ इस तरह की:

"मैंने 15 अगस्त, 1975 को रेडियो पर लाल किले से देश के नाम आपके संबोधन को जेल (यारवदा जेल) में सुना था। आपका यह संबोधन संतुलित और समय के अनुकूल था। इसलिए मैंने आपको यह पत्र लिखने का फैसला किया।"

इंदिरा गांधी ने देवरस के इस पत्र को जवाब नहीं दिया। देवरस ने 10 नवंबर, 1975 को इंदिरा को एक और पत्र लिखा। इस पत्र की शुरुआत उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दिए गए निर्णय के लिए बधार्इ के साथ की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनको चुनाव में भ्रष्ट साधनों के उपयोग का दोषी मानते हुए पद के अयोग्य करार दिया था। देवरस ने इस पत्र में लिखा,

 

"सुप्रीम कोर्ट के सभी पांच न्यायाधीशों ने आपके चुनाव को संवैधानिक घोषित कर दिया है, इसके लिए हार्दिक बधाई।" गौरतलब है कि विपक्ष का दृढ़ मत था कि यह निर्णय कांग्रेस के द्वारा 'मैनेज्ड' था। देवरस ने अपने इस पत्र में यहां तक कह दिया कि "आरएसएस का नाम जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के साथ अन्यथा जोड़ दिया गया है। सरकार ने अकारण ही गुजरात आंदोलन और बिहार आंदोलन के साथ भी आरएसएस को जोड़ दिया है...संघ का इन आंदोलनों से कोई संबंध नहीं है ..."
इंदिरा गांधी ने क्योंकि देवरस के इस पत्र का भी जवाब नहीं दिया, आरएसएस प्रमुख ने विनोबा भावे के साथ संपर्क साधा, जिन्होंने आपातकाल का आध्यात्मिक समर्थन और इंदिरा गांधी का पक्ष लिया था। देवरस ने अपने पत्र दिनांक 12 जनवरी, 1976 में, आचार्य विनोबा भावे से गिड़गिड़ाते हुए आग्रह किया कि आरएसएस पर प्रतिबंध हटाए जाने के लिए वे इंदिरा गांधी को सुझाव दें।ix  आचार्य विनोबा भावे ने भी पत्र का जवाब नहीं दिया, हताश देवरस ने तो उन्हों ने एक और पत्र लिखा जिस पर तिथि भी अंकित नहीं है उन्होंने लिखा:
    

"अखबारों में छपी सूचनाओं के अनुसार प्रधान मंत्री (इंदिरा गांधी) 24 जनवरी को वर्धा पवनार आश्रम में आपसे मिलने आ रही हैं। उस समय देश की वर्तमान परिस्थिति के बारे में उनकी आपके साथ चर्चा होगी। मेरी आपसे याचना है कि प्रधानमंत्री के मन में आरएसएस के बारे में जो गलत धारणा घर कर गर्इ है आप कृपया उसे हटाने की कोशिश करें ताकि आरएसएस पर लगा प्रतिबंध हटाया जा सके और जेलों में बंद आरएसएस के लोग रिहा होकर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में प्रगति और विकास में सभी क्षेत्रों में अपना योगदान कर सकें।"                                                    

आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक बलराज मधोक ने अपनी आत्मकथा में साफ़ लिखा है कि कि सरसंघचालक देवरस आराम-परस्त जीवन के शौकीन थे और जब उन्हें हिरासत में लिया गया था, “तो उन्होंने अगस्त 22, 1975 और 10 नवंबर, 1975 को इंदिरा गांधी को दो पत्र लिखकर संघ के प्रति अपने रवैये पर पुनर्विचार करने और उस पर से प्रतिबंध हटाने के लिए भेजा गया। उन्होंने श्री विनोबा भावे को एक पत्र भी लिखा जिसमें उनसे इंदिरा गांधी के दिल से [संघ] विरोधी भावनाओं को दूर करने का प्रयास करने का अनुरोध किया गया।''

[Zindagi Ka Safar –3: Deendayal Upadhyay Ki Hatya Se Indira Gandhi Ki Hatya Tak (Journey of Life-3: From the Murder of Deendayal Upadhyay to the Murder of Indira Gandhi), Dinman, Delhi, 2003, p. 188-189.]

इन तमाम गद्दारियों के बावजूद, आरएसएस वाले आपातकाल के दौरान उत्पीड़न के एवज में आज तक मासिक पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। भाजपा शासित राज्यों, जैसे कि- गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में उन लोगों को 10,000 रुपये मासिक पेंशन देने का फैसला लिया गया है जिन्हें आपातकालीन अवधि के दौरान एक महीने से कम समय तक जेल में रखा गया था। और आरएसएस से जुड़े जो लोग इस दौरान 2 माह से कम अवधि के जेल गए थे उन्हें बतौर 20000 रुपये पेंशन देना तय किया गया है। इस नियम में उन 'स्वयंसेवकों' का ख्याल रखा गया है, जिन्होंने केवल एक या दो महीने जेल में रहने के बाद घबरा कर दया याचिका पेश करते हुए माफीनामे पर हस्ताक्षर कर दिए थे। इस पेंशन के लिए ऐसी कोर्इ शर्त नहीं है कि लाभार्थी आपातकाल के पूरे दौर में जेल में रहा हो।

 

खास बात यह है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ़ देश की आज़ादी के आंदोलन में जेल में रहने वालों को मिलने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन पाने वालों में से एक भी आरएसएस का 'स्वयंसेवक' नहीं है। यहां एक तथ्य गौरतलब है कि उन सैकड़ों कम्युनिस्ट युवकों का किसी को ख्याल तक नहीं है जिन्हें आपातकाल के इस दौर में नक्सलपंथी कह कर फर्जी मुठभेड़ों मे मार दिया गया था। यहां एक और रोचक तथ्य है कि आरएसएस के हिंदुत्व सह-यात्री शिवसेना ने खुले आम आपातकाल का समर्थन किया था।

आरएसएस को आपातकाल के मुजरिमों को गले लगाने में भी कोई एतराज़ नहीं रहा है।  भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 2018 में स्वयंसेवकों के दीक्षा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था।[i] प्रणब मुखर्जी की गिनती आपातकाल के दौरान हुई ज्यादतियों के लिए जिम्मदार सर्वोच्च कांग्रेसी नेताओं में होती है और शाह आयोग ने भी आपातकाल की  ज़्यादतियों के लिए उन्हें प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार  माना था। आरएसएस के प्रधान कार्यालय पर प्रणब का सत्कार करते हुवे ज़ाहिर है आरएसएस को किसी भी तरह की लज्जा नहीं आयी। आरएसएस की त्रासदी यह है कि भारत में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था अभी तक क़ायम है। यही उसकी विवशता है। हालांकि वह नग्न तानाशाही का कट्टर हिमायती है परंतु उसे अपनी इस असलियत को छुपाने के लिए मुखौटे लगाने पड़ते हैं।

हम सब को यह याद रखने की जरूरत है कि इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल 21 मार्च, 1977 को उनके द्वारा वापस ले लिया गया था और उनकी पार्टी अगला आम चुनाव हार गई थी। जबकि आरएसएस-बीजेपी शासकों की टोली बिना आपातकाल लागू किए आतंक विरोधी कानूनों का सहारा लेकर शासन कर रही है; प्रधानमंत्री के रूप में मोदी के नेतृत्व में यह नई सामान्य बात है।

 

शम्सुल इस्लाम
25
जून, 2023

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देवरस के सभी पत्र आरएसएस के एक प्रकाशन से लिए गए हैं जिनका स्कैन्ड रूप यहाँ प्रस्तुत है । 



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