Friday, June 16, 2023

'औरंगज़ेब की औलादें': भारतीय मुसलमान या उच्च जाति के हिंदू!

 

'औरंगज़ेब की औलादें': भारतीय मुसलमान या उच्च जाति के हिंदू!

7 जून, 2023 को कोल्हापुर में हुयी व्यापक हिंसा, हिंदुत्व गिरोह से जुड़े हिंसा में शामिल लोगों  के दावों के अनुसार, 'भड़काऊ' सोशल मीडिया पोस्ट की प्रतिक्रिया थी, जिसमें मुग़ल शासक औरंगज़ेब (1618-1707) और मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की तस्वीरें दर्शायी गई थीं। टीपू सुल्तान कि सेना को 4 मई, 1799 के दिन ब्रिटिश सेना और निज़ाम की साझी सेना ने हरा  दिया था जिसमें सुल्तान कि जान भी गई थी। 'उत्तेजक' क्या था, यह नहीं बताया गया, जिसका अर्थ था कि औरंगज़ेब या टीपू की तस्वीरों को प्रदर्शित करने पर कोई प्रतिबंध नहीं होने के बावजूद तीन मुसलमान लड़कों द्वारा की गई पोस्ट को अपराध घोषित कर दिया गया। इन तस्वीरों को पोस्ट करने वालों की गिरफ्तारी के बावजूद सैकड़ों की तादाद में हिंदुतवादी चरम-पंथियों ने शहर पर हमला करने का फैसला किया। यह महाराष्ट्र में आरएसएस और आक्रामक हिंदुत्व की राजनीति से जुड़े नेताओं द्वारा शासक होने के बावजूद किया गया था। इस मामले में यह जानना दिलचस्प होगा है कि भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल नई दिल्ली में अपनी मृत्यु (15 दिसंबर, 1950) तक 1, औरंगज़ेब रोड पर रहते थे। सड़क का नाम औरंगज़ेब के नाम पर होने के बावजूद प्रधान मंत्री मोदी और आरएसएस के वर्तमान पसंदीदा इस 'लौह पुरुष' को कोई नाराज़गी नहीं थी।

महाराष्ट्र में इस तरह की गिरफ़्तरीयां जारी हैं। नासिक शहर के दो मुसलमान नौजवानों, शुएब मनियार और सलीम क़ाज़ी तथा नवी मुंबई पुलिस द्वारा एक व्यक्ति वसी के ख़िलाफ़ औरंगजेब की तस्वीर को प्रदर्शित करने के इल्ज़ाम में गिरफ़्तार किया गया है। ये गिरफ़्तरीयां स्थानीय हिन्दुत्वादी संगठनों कि शिकायत पर कि गई हैं।

[विस्तृत क़ा कानूनी जानकारी के लिये देखें: Khan, Khadija, Arrests in Maharashtra over Aurangzeb posts: What laws have been used, and whyThe Indian Express, Delhi, June 14, 2023. Link: https://indianexpress.com/article/explained/explained-law/arrests-in-maharashtra-over-aurangzeb-posts-what-laws-have-been-used-and-why-8663020/]

इस तरह की 'भड़काऊ' सोशल पोस्ट जब नहीं थीं तब भी पूरे महाराष्ट्र में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा का प्रचार करता हिन्दुत्वादी रथ बेलगाम दोड़ता हुआ देखा जा सकता था। एक प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक ने अपने एक संपादकीय में भयानक वास्तविकता का वर्णन निम्नलिखित शब्दों में किया:
नवंबर [2022] के बाद से, आकारहीन (अनियतरूपी) सकल हिंदू समाज के बैनर तले, एक छत्र निकाय जिसमें कोई एक नेता या संगठन नहीं है, और संघ परिवार से जुड़े कई संगठन हैं, राज्य के ज़िलों में हिंदू जन आक्रोशमोर्चा या रैलियां आयोजित की गई हैं। उनका घोषित एजेंडा: 'लव जिहाद' और 'लैंड जिहाद' के ख़िलाफ़ कानूनों पर ज़ोर देना।
“इनमें से कई रैलियों में भाजपा और (शिंदे) सेना के नेताओं, विधायकों और पदाधिकारियों की उपस्थिति और अभद्रता का माहौल जिसमें नफ़रत भरे भाषण दिए जाते हैं और अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है, भाजपा द्वारा हिंदुत्व-वोट के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सेना को एक किनारे करना है। 
“इस प्रक्रिया में, यह एक अजीबोग़रीब परिघटना को भी सामने लाता है - भाजपा का, अप्रत्यक्ष रूप से और स्थानीय संदर्भों में, सड़कों पर ऐसे तरीक़ों से लामबंद होना जो क़ानून के शासन को ख़तरे में डालते हैं, अपनी मांगों पर उस राज्य में ज़ोर जहां उसकी अपनी सरकार सत्ता में है।”
[Edit, ‘Express View on Devendra Fadnavis’s communal rhetoric: Dog-whistle in Mumbai’ in The Indian Express, Delhi, June 10, 2023. https://indianexpress.com/article/opinion/editorials/devendra-fadnavis-aurangzeb-ki-aulad-kolhapur-communal-tension-8655090/]   
कोल्हापुर हिंसा पर सबसे शर्मनाक प्रतिक्रिया महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री की ओर से आई जो महाराष्ट्र के गृह-मंत्री भी है। जब हिंदुत्व के चरमपंथियों के ज़रिये गुंडअगर्दी और हिंसा जारी थी और फडणवीस के अधीन स्थानीय क़ानून व्यवस्था के ज़िम्मेदार अफ़सर भी हिंसा के कारणों का विश्लेषण नहीं कर पाये थे, तो उन्होंने घोषणा कर डाली की:
सवाल यह उठता है कि अचानक औरंगज़ेब की इतनी औलादें कहाँ से पैदा हो गयीं? [इनके] पीछे कौन है? इस का असली मालिक कौन है यह भी ढूंढ कर हम निकलेंगे। कौन महाराष्ट्र में, क़ानून व्यवस्था ख़राब हो, महाराष्ट्र का नाम ख़राब हो यह करने कि कोशिश कर रहा है यह भी हम ढूंढ कर निकलेंगे।” 

[Achanak Itni Aurangzeb Ki Auladen Kahan Se Paida Hui Kolhapur Protest Hone Par Bole DCM Devndra Fadnavis’, June 7, 2023, https://gallinews.com/achanak-itni-aurangzeb-ki-auladen-kahan-se-paida-hui-kolhapur-protest-hone-par-bole-dcm-devndra-fadnavis/]

 
इस चौंकाने वाले बयान को केवल और केवल सनकी, ज़हरीला और गहरे सांप्रदायिक पूर्वाग्रह से प्रेरित बताया जा सकता है। इस तरह की भाषा यक़ीनन हिंदुत्व बौद्धिक प्रशिक्षण शिविरों में सीखी जाती है और महाराष्ट्र में संवैधानिक व्यवस्था की स्थिरता के लिए क़तई ठीक नहीं है। यह दुखद है कि हिंदुत्व के कट्टरपंथियों की ज़्यादतियों को नियंत्रित करने में गृह विभाग की पूरी विफलता को हिंदुत्व ब्यानबाज़ी का उपयोग करके ढकने का प्रयास किया जा रहा है।  फडणवीस अगर महाराष्ट्र में पूरे मुसलमान अल्पसंख्यकों को धमकाने के लिए कुत्ता-सीटी (डॉग-ह्विसल, इस का मतलब है कि किसी एक समूह को एक दूसरे समूह पर हमला करने के लिये भड़काऊ भाषा का प्रयोग करना) के इस्तेमाल के शौक़ीनन हैं, तो उन्हें गृह मंत्री के पद से तुरंत इस्तीफ़ा देना चाहिए और  हिंदुतवादी चरमपंथियों की सड़क पर जमा भीड़ में शामिल हो जाना चाहिये।
उम्मीद की जा सकती है कि फडणवीस में इतनी सामान्य बुद्धि ज़रूर होगी कि जब वे औरंगज़ेब की तस्वीर लगाने वाले भारतीय मुसलमानों को "औरंगज़ेब की औलादें" बात रहे हैं तो उनका मतलब यह नहीं है कि ये मुसलमान औरंगज़ेब या मुग़ल शासकों के प्रत्यक्ष वंशज हैं। वास्तव में, अगर फडणवीस को मुग़लों के रक्त-वंशजों को खोजना है तो उन्हें भारतीय मुसलमानों से परे देखना होगा जैसे के हम आगे पढ़कर जानेंगे! अगर वे औरंगज़ेब की विरासत के वाहक के रूप में देश के मुसलमानों का ज़िक्र कर रहे हैं तो उसकी ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की रोशनी में पड़ताल करना ज़रूरी है। क्या यह सच है कि भारतीय मुसलमान औरंगज़ेब की विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं या उसे आगे बढ़ाते हैं? यह हिंदू राष्ट्रवादियों द्वारा निर्मित एक झूठ है। औरंगज़ेब के शासन के 'हिंदू' आख्यान तक से पता चलता है कि भारत के अन्य मुग़ल शासकों के शासन की तरह उनका शासन भी हिंदू उच्च जातियों का शासन था जैसा कि समकालीन दस्तावेज़ साबित करेंगे।
फडणवीस जैसे हिंदुत्व के कट्टरपंथियों को पता होना चाहिए कि औरंगज़ेब या मुग़ल शासन का 'इस्लामी' शासन, कुछ अपवादों को छोड़ कर, अपने साम्राज्य को चलाने में हिंदू उच्च जातियों का झुण्डों में 'मुसलमान' शासकों कि सेवा में शामिल होने के कारण अस्तित्व में आया और मज़बूती से चलता रहा। यह एकता कितनी गहरी और पक्की थी, इसका अंदाज़ा  इसी बात से लगाया जा सकता है कि अकबर के बाद कोई मुग़ल बादशाह किसी मुसलमान मां से पैदा नहीं हुआ। इसके अलावा, हिंदू उच्च जातियों ने 'मुसलमान' शासकों के प्रति असीम वफ़ादारी दिखाते हुए उनकी दिमाग़ और बल दोनों से ख़ूब सेवा की। 

अरबिंदो घोष जिन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को हिंदू आधार प्रदान करने में प्रमुख भूमिका निभाई, ने स्वीकार किया कि मुग़ल शासन इस तथ्य के कारण टिका रहा कि मुग़ल सम्राटों ने हिंदुओं को "सत्ता और ज़िम्मेदारी के पद दिए, उन्हों ने अपनी सल्तनतों को संरक्षित रखने के लिये उनके मस्तिष्क और बाहुबल का इस्तेमाल किया"[Cited in Chand, Tara, History of the Freedom Movement in India, vol. 3, Publication Division  Government of India, Delhi, 1992, p. 162.] प्रसिद्ध इतिहासकार तारा चंद ने मध्ययुगीन काल की प्राथमिक स्रोत सामग्री पर भरोसा करते हुए निष्कर्ष निकाला कि 16वीं शताब्दी के अंत से 19वीं शताब्दी के मध्य तक, "यह उचित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पश्चिमी पंजाब को छोड़कर पूरे भारत में, भूमि में श्रेष्ठ अधिकार हिंदुओं के हाथों में आ गए थेजिनमें से अधिकांश राजपूत थे। [Chand, Tara, History of the Freedom Movement in India, vol. 1, Publication Division  Government of India, Delhi, 1961, p. 124.]

माआसिरुल-उमरा [कमांडरों की जीवनी] 1556 से 1780 तक मुग़ल साम्राज्य में अधिकारियों का एक जीवनी शब्दकोश [अकबर से शाह आलम तक] को मुग़ल शासकों द्वारा रखे गये उच्च रैंक के अधिकारियों का सबसे प्रामाणिक रिकॉर्ड माना जाता है। इस काम को शाहनवाज़ ख़ान और उनके बेटे अब्दुल हई ने 1741 और 1780 के बीच संकलित किया था। ये ब्योरा मुग़ल शासकों के दस्तावेज़ों पर आधारित था। इसके अनुसार इस अवधि में मुग़ल शासकों ने लगभग 100 (365 में से) हिंदुओं को उच्च पदस्थ अधिकारियों के ओहदों पर नियुक्त किया था, जिनमें से अधिकांश राजपूत राजपूताना, केंद्रीय-भारत, बुंदेलखंड महाराष्ट्र से थे। जहां तक ​​संख्या का सवाल है, ब्राह्मणों ने मुग़ल प्रशासन को संभालने में राजपूतों का अनुसरण किया।

[Khan, Shah Nawaz, Abdul Hai, Maasir al-Umara [translated by H Beveridge as Mathir-ul-Umra], volumes 1& 2, Janaki Prakashan, Patna, 1979.]

दिलचस्प बात यह है कि 1893 में स्थापित काशी नगरी प्रचारिणी सभा ने जो "हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध" थी 1931 में इस पुस्तक के उन हिस्सों का जिन में ‘मुग़ल दरबार के हिन्दू सरदारों कि जीवनियां’ का वर्णन किया गया था का हिन्दी अनुवाद करके एक पुस्तक के रूप में छापा।

[व्रजरत्न दास (अनुवाद), माआसिरुल-उमरा, काशी नागरी प्राचारिणी सभा, काशी, 1931]

यह किसी का तर्क नहीं हो सकता है कि औरंगज़ेब [1618-1707] ने अपनी भारतीय प्रजा के ख़िलाफ़ जघन्य अपराध नहीं किये। यह याद रखने की  ज़रूरत है कि उसकी क्रूरता ग़ेर-मुसलमानों तक ही सीमित नहीं थी, उसके अपने पिता, भाई, शिया समुदाय, वे मुसलमान जो इस्लाम के उसके ब्रांड का पालन नहीं करते थे, भारत के पूर्वी, मध्य और पश्चिमी हिस्सों में मुसलमान शासक राजवंशों को भयानक क्रूरता और दमन का सामना करना पड़ा। उन्हें नष्ट कर दिया गया। बर्बर शब्द सिख गुरुओं, उनके परिवारों और अनुयायियों के साथ उसके व्यवहार का वर्णन करने के लिए एक बहुत हल्का शब्द होगा। उसी औरंगज़ेब ने प्रसिद्ध सूफ़ी संत, सरमद को दिल्ली की जामा मस्जिद के अहाते में क़तल किया [जामा मस्जिद के पूर्वी द्वार पर जहां सीढ़ीयां का आरंभ होता है वहाँ उनकी क़ब्र पर एक मज़ार है जो बहुत से लोगों के लिये आज भी पूजनीय है]। यह भी सच है कि ऐसे अनगिनत मामले थे जब औरंगज़ेब के निरंकुश शासन के दौरान हिंदुओं और उनके धार्मिक स्थलों को हिंसक तरीक़े से निशाना बनाया गया था। उस ने ‘सतनामियों’ के विद्रोहों को कुचल डाला।

हालाँकि, उस के दुवारा हिंदू और जैन धार्मिक स्थलों के संरक्षण के समकालीन रिकॉर्ड उपलब्ध हैं। दो जीवित उदाहरण भव्य गौरी शंकर मंदिर है, जो लाल किले के लाहौरी गेट से थोड़ी दूरी पर है, जो शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान बनाया गया था और जो औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान काम करता रहा और लाल किले के ठीक सामने जैन लाल मंदिर। [Trushke, Audrey, Aurangzeb: The Man and the Myth, Penguin, Gurgaon, 2017, pp. 99-106.] यह याद रखना ज़रूरी है कि औरंगज़ेब के सभी अपराधों को केवल हिंदुओं के दमन तक सीमित करना मानवता के ख़िलाफ़ उसके संगीन अपराधों को हल्का करने के समान होगा।

औरंगज़ेब ने युद्ध के मैदान में कभी शिवाजी का सामना नहीं किया। यह उसके  सेनापति, आमेर (राजस्थान) के एक राजपूत शासक, जय सिंह प्रथम (1611-1667) थे, जिन्हें शिवाजी (1603-1680) को अधीन करने के लिए भेजा गया था। जय सिंह II (1681-1743), (जय सिंह I के भतीजे) मुग़ल सेना के अन्य प्रमुख राजपूत सेनापति थे जिन्होंने औरंगज़ेब की वफ़ादारी सेवा की थी। उन्हें 1699 में औरंगज़ेब द्वारा 'सवाई' [अपने समकालीनों से एक चौथाई गुना श्रेष्ठ] की उपाधि से सम्मानित किया गया था और इस तरह उन्हें महाराजा सवाई जय सिंह के नाम से जाना जाने लगा। उन्हें औरंगज़ेब द्वारा मिर्ज़ा राजा [शाही राजकुमार के लिए एक

फ़ारसी उपाधी] की उपाधि भी दी गई थी। अन्य मुग़ल शासकों द्वारा उन्हें दी गयीं अन्य उपाधियाँ 'सरमद-ए-राजाह-ए-हिंद' [भारत के शाश्वत शासक], 'राज राजेश्वर' [राजाओं के स्वामी] और 'श्री शांतनु जी' [हितकारी राजा] थीं। ये उपाधियाँ आज भी उनके वंशजों द्वारा प्रदर्शित की जाती हैं।

हिंदुत्व कथानक के अनुसार प्रताप सिंह 1 जिन को महाराणा प्रताप (1540-1597) के रूप में जाना जाता है, भारत के मुग़ल शासक अकबर के ख़िलाफ़ हिंदू और हिंदू राष्ट्र के लिए लड़े जो इस्लामी शासन के तहत भारत के हिंदुओं को अधीन करना चाहता था। दिलचस्प बात यह है कि अकबर ने कभी भी युद्ध में महाराणा का सामना नहीं किया; यह अकबर का सबसे भरोसेमंद राजपूत सैन्य कमांडर, मान सिंह I (1550-1614) था, जिसने मुग़ल साम्राज्य की ओर से महाराणा के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी थी। हल्दीघाटी की सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई (18 जून, 1576) महाराणा के नेतृत्व वाली सेना और मान सिंह I के बीच लड़ी गई, जिसने मुग़ल सेना का नेतृत्व किया। वह नवरत्नों (अकबर के दरबार उस के प्रिय दरबारी) में से एक था, अकबर ने उसे अपना फ़रज़ंद (पुत्र) कहा और उसने अकबर के साम्राज्य के कई सूबों पर शासन किया। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि हकीम ख़ान सूर/सूरी, एक अफ़ग़ान, महाराणा प्रताप की सेना के तोपख़ाना के मुखिया थे जो हल्दीघाटी कि लड़ाई में लड़ते हुए शहीद हुए थे।

हमारे पास राजा रघुनाथ बहादुर, एक कायस्थ, जो शाहजहाँ और औरंगज़ेब दोनों के दीवान आला (प्रधान मंत्री) के रूप में कार्य करता था, का प्रत्यक्ष विवरण है। उसके  प्रत्यक्ष वंशजों में से एक, राजा महाराज लाल द्वारा लिखी गई एक जीवनी के अनुसार,

राजा रघुनाथ बहादुर दीवान आला (प्रधान मंत्री) के सबसे ऊंचे पद पर पहुंचकर अपने सह- जातियों [कायस्थों] के हितों से बेख़बर नहीं थे। राजा ने उनमें से प्रत्येक को उनकी व्यक्तिगत योग्यता के अनुसार सम्मान और परिलब्धियों के पदों पर नियुक्त किया; जबकि उनमें से कई को उनकी सेवाओं के लिए सम्मान और मूल्यवान जागीरें प्रदान की गईं। एक भी कायस्थ

बेरोज़गार या ज़रूरतमंद परिस्थितियों में नहीं रहा।

[Lal, Lala Maharaj, Short Account of the Life and Family of Rai Jeewan Lal Bahadur Late Honrary Magistrate Delhi, With Extracts from His Diary Relating to the Times of Mutiny 1857, 1902.]

इस वृत्तांत से पता चलता है कि औरंगज़ेब, जो एक 'कट्टर मुसलमान' और बेलगाम बादशाह था कि सल्तनत में, कायस्थ प्रधान मंत्री अपनी जाति के लोगों को जो सभी हिन्दू थे, को संरक्षण देने में आज़ाद था। औरंगज़ेब इस हिंदू प्रधान मंत्री के इतने दिलदादा थे कि उस की मृत्यु के बाद एक पत्र में अपने एक वज़ीर (मंत्री) असद ख़ान को हिदायती दी की राजा रघुनाथ के 'ऋषि- मार्गदर्शन' का पालन करे। [Trushke, Audrey, pp. 74-75.]

 

औरंगज़ेब या अन्य 'मुसलमान' शासकों के पूर्व-आधुनिक भारत में किए गए अपराधों को उन के धर्म से जोड़ने से आरएसएस द्वारा बताए गए 'हिंदू' इतिहास के लिए भी गंभीर परिणाम पैदा होने वाले हैं। उदाहरण के लिए, लंका के राजा रावण को लें, जिसने 'हिंदू' कथा के अनुसार 14 साल के लंबे वनवास या वनवास के दौरान सीता, उनके पति भगवान राम और उनके साथियों के ख़िलाफ़ अकथनीय अपराध किए। यह रावण, उसी कथा के अनुसार, एक विद्वान ब्राह्मण था जो भगवान शिव के सबसे बड़े उपासकों में से एक था।

महाकाव्य महाभारत हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नहीं बल्कि दो 'हिंदू' सेनाओं के बीच (पांडवों और कौरवों (दोनों क्षत्रिय) के रूप में जाने जाने वाले दो परिवारों के बीच) एक भीषण युद्ध की कहानी है। इस में 'हिंदू' वृत्तांत  के अनुसार 120 करोड़ लोग, सभी हिन्दू, का वध हुआ था।  पांडवों की संयुक्त पत्नी द्रौपदी को कौरवों, सभी हिन्दू, ने निर्वस्त्र कर दिया था। अगर औरंगज़ेब और अन्य 'मुसलमान' शासकों की तरह रावण, कौरवों, जयसिंह प्रथम और द्वितीय आदि के अपराधों को उनके धर्म से जोड़ दिया जाए तो देश क़सायी-ख़ाने में तब्दील हो जाएगा। और यदि अतीत के अपराधियों के वर्तमान सहधर्मियों से बदला लेना है तो भारतीय सभ्यता की शुरुआत से इस की शुरुआत करनी होगी; भारतीय मुसलमानों की बारी तो बहुत बाद में आएगी!

एक और महत्वपूर्ण तथ्य जिसे जानबूझकर छुपा कर रखा जाता है, वह यह है कि 500 ​​सौ से अधिक वर्षों के 'मुसलमान'/मुग़ल शासन के बावजूद, जो हिंदुत्व इतिहासकारों के अनुसार हिंदुओं को ख़त्म करने या उन्हें बल-पूर्वक मुसलमान बनाने की एक संयोजित परियोजना के अलावा और कुछ नहीं था; भारत एक ऐसा देश बना रहा जिसमें हिंदुओं का कुल आबादी में 2/3 बहुमत उस समय भी बना रहा जब औपचारिक 'मुसलमान' शासन भी समाप्त हो गया था। ब्रिटिश शासकों ने पहली जनगणना 1871-72 में की थी। जनगणना रिपोर्ट के अनुसार:

"ब्रिटिश भारत की हिन्दू (सिखों सहित) जनसंख्या 140½ मिलियन [14 करोड़ 50 लाख] है जो भारत कि पूरी आबादी का 73.5 प्रतिशत है। मुसलमान आबादी 40¾ मिलियन [4 करोड़ 7 लाख पचास हज़ार] है यानी 21.5%। बौद्ध, जैन, ईसाई, यहूदी, पारसी, ब्रह्मोस और अन्य

9.25 मिलियन [लगभग 1 करोड़ से कुछ कम] जो कुल आबादी का 5 प्रतिशत है।

[Memorandum on the Census Of British India of 1871-72: Presented to both Houses of Parliament by Command of Her Majesty London, George Edward Eyre and William Spottiswoode, Her Majesty's Stationary Office 1875, 16.]

इन आँकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि हिन्दुओं का उत्पीड़न और उनका सफ़ाया 'मुसलमान' शासन की गौण परियोजना भी नहीं थी। अगर ऐसा होता तो भारत से हिंदू धर्म और हिन्दू धर्म के अनुयायी ग़ायब हो जाते। 'मुसलमान' शासन के अंत में हिंदू 73.5% थे जो अब 2011 की जनगणना के अनुसार बढ़कर 79.80% हो गए हैं। इसके उलट मुसलमान जो 21.5% थे वो घटकर 14.23% रह गए हैं। भारत ही एकमात्र ऐसा देश प्रतीत होता है जहाँ आधी सहस्राब्दी से अधिक के मुग़ल 'मुसलमान' शासन के बावजूद उनकी सल्तनत कि जनसंख्या शासकों के धर्म में परिवर्तित नहीं हुई। भारत के मुसलमान न केवल संख्यात्मक रूप से अल्पसंख्यक बने रहे, बल्कि धन, संसाधनों और अन्य लाभों से भी वंचित थे, जो कि मुग़ल शासन के तहत हिंदू उच्च जातियों का हासिल थे।

द इंडियन एक्सप्रेस (10 जून, 2023) ने सही कहा है कि महाराष्ट्र में ध्रुवीकरण की नई राजनीति राज्य के उन क्षेत्रों में घुसपैठ करने का प्रयास कर रही है, जहां अल्पसंख्यकों की बहुत कम या कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति नहीं है। [मिसाल के तौर पर] कोल्हापुर में, जहां सहिष्णुता और समावेश के मूल्यों को क़ायम रखने वाली प्रगतिशील राजनीति की विरासत रही है।"

हिंदुत्व के कट्टरपंथियों द्वारा कोल्हापूर में जारी हिंसा की कहानी का मूल उद्देश्य कोल्हापुर के मुसलमानों को आतंकित करने के एक और प्रयास की तरह लग सकता है, लेकिन असली उद्देश्य, एक ऐसे क्षेत्र में हिंदुत्व का आधिपत्य स्थापित करना है जो मराठा हिंदू राजाओं द्वारा शासित होने के बावजूद एक ऐसा इलाक़ा था जहां शासकों ने न्याय और समतावाद के सिद्धांतों की कभी अनदेखी नहीं की। 28 वर्षों तक कोल्हापुर राज्य पर शासन करने वाले शाहूजी महाराज (1874-1922) ने शूद्रों और निचली जातियों की स्थिति में सुधार के लिए शक्तिशाली क़दम उठाए।

उन्होंने ज्योतिबा फुले द्वारा स्थापित ‘सत्य शोधक समाज’ को पूर्ण संरक्षण दिया। उन्होंने अस्पृश्यता को समाप्त किया। शाहू जी महाराज भारतीय इतिहास के पहले शासक थे जिन्होंने कमज़ोर वर्गों को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया। उन्हों ने ब्राह्मणों को प्राप्त सभी विशेषाधिकार वापस ले लिए। उन्हों ने अपने महल और दरबार से तमाम ब्राह्मण पुजारियों को हट दिया और एक मराठा युवक को ग़ैर-ब्राह्मणों के पुजारी के रूप में नियुक्त किया। उच्च जातियों के कड़े विरोध के बावजूद उन्होंने अपने राज्य में लड़कियों की शिक्षा का समर्थन ही नहीं किया बल्कि बड़े पेमाने पर लड़कियों के लिये स्कूल खोले।

इसलिए महाराष्ट्र के आरएसएस-बीजेपी शासक मुख्य रूप से महाराष्ट्र के इतिहास में समतावादी, महिला और दलित समर्थक विरासत का सफ़ाया करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर हम हिंदुत्व की इस साज़िश को समझ कर इन हमलों का विरोध करने के लिए नहीं उठे तो न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत को बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

 

शम्सुल इस्लाम

जून 16, 2023

Email: notoinjustice@gmail.com

 

 

 

 

 

 

 

 

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