Monday, April 8, 2024

प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी, आज़ादी से पहले भारत में मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस की नहीं बल्कि हिंदुत्व गिरोह की मिलीभगत थी!

 

प्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी, आज़ादी से पहले भारत में मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस की नहीं बल्कि हिंदुत्व गिरोह की मिलीभगत थी!

हमारे प्रधानमंत्री खुद को 'हिंदू' राष्ट्रवादी और आरएसएस का सदस्य बताते हैं। वह गर्व से इस तथ्य को साझा करते हैं कि उन्हें हिंदुत्व राजनीति के दो पिताओं में से एक, एमएस गोलवलकर (दूसरे थे वीडी सावरकर) ने एक राजनीतिक नेता बनने के लिए तैयार किया था। उन से ही उन्हों ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने और हिंदुत्व राजनीति स्थापित करने का काम सीख था।
हिंदुत्व के कट्टरपंथियों की नज़र में पीएम मोदी पुनर्जीवित सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और हिंदुओं के दुश्मनों के खिलाफ हिंदू राष्ट्रवाद के रक्षक हैं। मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली स्वतंत्रता-पूर्व मुस्लिम लीग पीएम मोदी के लिए एक पसंदीदा और आसान निशाना है जो उन्हें भारतीय मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में भी मदद करता है। किसी भी चुनाव में मोदी मुस्लिम अलगाववाद के खिलाफ एक अथक योद्धा का रूप धारण कर लेते हैं। आगामी संसदीय चुनावों के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सार्वजनिक किए गए घोषणापत्र पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के सहारनपुर (जहां मुसलमानों की बड़ी आबादी है और धार्मिक ध्रुवीकरण का इतिहास है) में एक चुनावी रैली में उन्होंने घोषणा की कि कांग्रेस का घोषणापत्र, जिसे कल जारी किया गया [5 अप्रैल, 2024], दर्शाता है कि यह देश की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकता। कांग्रेस के घोषणापत्र में आज़ादी से पहले मुस्लिम लीग की नीतियों की छाप है।

[‘Congress manifesto reflects policies of Muslim League before Independence: PM Narendra Modi’, The Indian Express, Delhi, April 7, 2024.

https://www.telegraphindia.com/elections/lok-sabha-election-2024/congress-manifesto-reflects-policies-of-muslim-league-before-independence-pm-narendra-modi/cid/2011716]

आरएसएस/हिंदुत्व के एक नेता और विचारक के रूप में मोदी को घोर झूठ बोलने के लिए (आरएसएस दुनिया का सबसे बड़ा गुरुकुल या विश्वविद्यालय है जो बे-सर-पैर झूठ बोलने का प्रशिक्षण देता है) माफ किया जा सकता है लेकिन भारत के प्रधान मंत्री के रूप में नहीं। किसी भी जवाबदेही पर आधारित लोकतंत्र में उन पर झूठी गवाही देने का आरोप लगाया गया होता और उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर किया गया होता। लेकिन वर्तमान परिदृश्य में जब भारतीय चुनावों का नियामक, भारत का चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल का जी-हज़ूर बन गया है, केवल भारत के लोग ही ऐसे झूठ को सबक सिखा सकते हैं।

आइये, यह जानने के लिए कि स्वतंत्रता-पूर्व भारत में मुस्लिम लीग के असली दोस्त कौन थे हम हिंदुत्व अभिलेखागार से परिचित हों।

सावरकर दो-राष्ट्र सिद्धांत के प्रवर्तक के रूप में
सावरकर हिंदुत्व की राजनीति के जन्मदाताओं में से एक हिंदू राष्ट्रवादी थे जिन्होंने सबसे विस्तृत दो-राष्ट्र सिद्धांत विकसित किया था। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि मुस्लिम लीग ने अपना पाकिस्तान प्रस्ताव 22-23 मार्च 1940 में ही पारित किया, लेकिन आरएसएस के महान दार्शनिक और मार्गदर्शक सावरकर ने उससे बहुत पहले द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का प्रचार किया था। 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा के 19वें सत्र में अध्यक्षीय भाषण देते हुए सावरकर ने स्पष्ट रूप से घोषणा की:

"फिलहाल हिन्दुस्तान में दो प्रतिदुवांधि राष्ट्र आस-पास रह रहे हैं।  कई अपरिपक्व राजनीतिज्ञे यह मानकर गंभीर ग़लती कर बैठते हैं कि हिंदुस्तान पहले से ही एक सद्भावपूर्ण राज्य के रूप में ढल गया है या सिर्फ हमारी इच्छा होने से ही इस रूप में ढल जाएगा। इस प्रकार के हमारे नेक नियत वाले पर लापरवाह दोस्त मात्र सपनों को सच्चाईयों को बदलना चाहते हैं।  दृढ़ सच्चाई यह है कि तथाकथित साम्प्रदायिक सवाल और कुछ नहीं बल्कि सैंकड़ों सालों से हिन्दू और मुसलमान के बीच सांस्कृतिक, धार्मिक और राष्ट्रीय प्रतिदुवांधिता के नतीजे में हम तक पहुंचे हैं।  आज यह क़तई नहीं माना जा सकता कि हिंदुस्तान एक एकता में पिरोया हुआ और मिलाजुला राष्ट्र है। बल्कि इसके विपरीत हिंदुस्तान में मुख्यतौर पर दो राष्ट्र हैं-हिन्दू और मुसलमान।"

[Savarkar, VD., Samagar Savarkar Wangmaya (Collected Works of Savarkar), vol. 6, Hindu Mahasabha,  Poona, 1963, p.296.]

आरएसएस द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के प्रवर्तक के रूप में
सावरकर के पद्द-चिन्हों पर चलते हुए आरएसएस ने इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया कि हिंदू और मुस्लिम मिलकर एक राष्ट्र का निर्माण करते हैं। स्वतंत्रता की पूर्व संध्या (14 अगस्त, 1947) पर आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र ऑर्गेनाइज़र ने एक संपादकीय में राष्ट्र की अपनी अवधारणा को निम्नलिखित शब्दों में प्रस्तुत किया:

"राष्ट्रत्व की छद्म धारणाओं से गुमराह होने से हमें बचना चाहिए। बहुत सारे दिमाग़ी भ्रम और वर्तमान एवं भविष्य की परेशानियों को दूर किया जा सकता है अगर हम इस आसान तथ्य को स्वीकारें कि हिंदुस्थान में सिर्फ हिंदू ही राष्ट्र का निर्माण करते हैं और राष्ट्र  का ढांचा उसी सुरक्षित और उपयुक्त बुनियाद पर खड़ा किया जाना चाहिए...स्वयं राष्ट्र को हिंदुओं द्वारा हिंदू परम्पराओं, संस्कृति, विचारों और आकांक्षाओं के आधार पर ही गठित किया जाना चाहिए।"

हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की मिलीभगत पर डॉ अंबेडकर
स्वतंत्रता-पूर्व भारत में सांप्रदायिक राजनीति के गहन शोधकर्ता बाबा साहब डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के मुद्दे पर हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के बीच आत्मीयता और सौहार्द को रेखांकित करते हुए लिखा:

"यह बात भले विचित्र लगे लेकिन एक राष्ट्र बनाम दो राष्ट्र के प्रशन पर मिस्टर सावरकर मिस्टर जिन्ना के विचार परस्पर विरोधी होने के बजाय एक-दूसरे से पूरी तरह मेल खाते हैं। दोनों ही इसे स्वीकार करते हैं, और केवल स्वीकार करते हैं बल्कि इस बात पर जोर देते हैं कि भारत में दो राष्ट्र हैं- एक मुस्लिम राष्ट्र और दूसरा हिंदू राष्ट्र।"

[B. R. Ambedkar, Pakistan or the Partition of India, Govt. of Maharashtra, Bombay, 1990 [Reprint of 1940 edition], p. 142.]

 

सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन सरकारें चलाईं
वर्तमान में भारत पर शासन करने वाले हिंदू राष्ट्रवादी सावरकर की संतानें शर्मनाक तथ्य को छुपाती हैं कि सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा ने संयुक्त स्वतंत्रता संग्राम, विशेष रूप से ब्रिटिश शासकों के खिलाफ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन को तोड़ने के लिए मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया था। 1942 में कानपुर (कानपुर) में हिंदू महासभा के 24वें सत्र में अध्यक्षीय भाषण देते हुए, उन्होंने निम्नलिखित शब्दों में मुस्लिम लीग के साथ मित्रता का बचाव किया,

"हिंदू महासभा जानती है कि व्यावहारिक राजनीति में हमें तर्कसंगत समझौतों के साथ आगे बढ़ना चाहिए। हाल ही सिंध की सच्चाई को समझें, जहां निमंत्रण मिलने पर सिंध हिंदू महासभा ने मुस्लिम लीग के साथ मिल कर साझा सरकार चलाने की जिम्मेदारी ली। बंगाल का उदाहरण भी सब के सामने है। उद्दंड (मुस्लिम) लीगी जिन्हें कांग्रेस अपने तमाम आत्म समर्पणों के बावजूद खुश नहीं रख सकी, हिंदू महासभा के संपर्क में आने के बाद तर्कसंगत समझौतों और परस्पर सामाजिक व्यवहार को तैयार हो गए। श्री फजलुलहक की प्रीमियरशिप (मुख्यमंत्रित्व) तथा महासभा के निपुण सम्माननीय नेता डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में दोनों समुदायों के हित साधते हुए एक साल तक सफलतापूर्वक चली। इसके अलावा हमारे कामकाज से यह भी सिद्ध हो गया कि हिंदू महासभा ने राजनीतिक सत्ता केवल आमजन के हितार्थ प्राप्त की थी, कि सत्ता के सुख पाने लाभ बटोरने के लिए।"

[यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग ने उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (NWFP) में भी साझा सरकार चलायी थी।]

[Savarkar, VD., Samagar Savarkar Wangmaya (Collected Works of Savarkar), vol. 6, Hindu Mahasabha,  Poona, 1963, pp.479-480.]

यह हमारे प्यारे वतन की त्रासदी है कि प्रधान-मंत्री पद पर बैठा एक व्यक्ति आरएसएस की शाखाओं और बौद्धिक शिविरों (वैचारिक प्रशिक्षण शिविरों) में सीखे गए बेशर्म झूठ का सहारा लेता है, जिसकी पुष्टि हिंदुत्व अभिलेखागार भी नहीं करते हैं। वे अपने पद से जुड़े सम्मान, प्रतिष्ठा और मर्यादा के साथ विश्वासघात कर रहे हैं। राष्ट्र को प्रधान-मंत्री मोदी से अनुरोध करना चाहिए कि यदि वह आरएसएस के कैडर के रूप में कार्य करना चाहते हैं तो उन्हें पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और आरएसएस के शीर्ष अधिकारियों की पंक्ति में से एक पद तुरंत शुशोभित करलेना चाहिये ताकी दुनिया के सब से बड़े जनतन्त्र को विनाश से बचाया जा सके।

शम्सुल इस्लाम 
4 अप्रैल 2024

 

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