Saturday, February 1, 2020

गांधीजी का 72वां शहादत दिवस: गांधीजी हिन्दू-राष्ट्रवाद विरोधी थे, इस लिए हिन्दुत्वादियों ने की उनकी हत्या

गांधीजी का 72वां शहादत दिवस:
गांधीजी हिन्दू-राष्ट्रवाद विरोधी थे, इस लिए हिन्दुत्वादियों ने की उनकी हत्या

मोहनदास कर्मचंद गाँधी जिन्हें राष्ट्रपिता (यह उपाधि नेताजी सुभाष चंद्र बोस दुवारा दी गयी थी) भी माना जाता है की जनवरी 30, 1948 को हिन्दुत्वादी आतंकियों दुवारा हत्या जिसे हिन्दुत्वादी 'वध' की संज्ञा देते हैं के कारणों के बारे में आरएसएस-भाजपा लगातार भ्रम फैलाने की कोशिश करते रहे हैं। एक झूठ यह बोला जाता है की गाँधी पाकिस्तान को करोड़ो रुपए दिलाना चाहते थे।  सच यह है की देश के बंटवारे के बाद उत्पन्न हुए इस विवाद से बहुत पहले अपने आप को हिन्दू राष्ट्रवादी बताने वाले लोगों ने 4-5 बार गांधीजी पर जानलेवा हमले किए थे, लेकिन वे बच गए थे।   
गांधीजी की हत्या भारतीय राष्ट्रीयता के बारे में दो विचारधाराओं के बीच संघर्ष का परिणाम थी।  गांधीजी का जुर्म यह था की वे एक ऐसे आज़ाद भारत की कल्पना करते थे जो समावेशी होगा और जहाँ विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग बिना किसी भेद-भाव के रहेंगे। दूसरी ओर गाँधी के हत्यारों ने हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों विशेषकर विनायक दामोदर सावरकर के नेतृत्व वाली हिन्दू महासभा में सक्रिय भूमिका निभाते हुवे हिंदुत्व का पाठ पढ़ा था। हिन्दू अलगाववाद की इस वैचारिक धरा के अनुसार केवल हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करते थे। 
हिंदुत्व विचारधारा के जनक सावरकर ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन हिंदुत्व नमक ग्रन्थ ( 1923) में किया था। याद रहे भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने वाली यह पुस्तक अँगरेज़ शासकों ने सावरकर को लिखने का अवसर दिया था जब वे जेल में थे और उनपर किसी भी तरह की राजनैतिक गतविधियों करने पर पाबन्दी थी। इस को समझना ज़रा भी मुश्किल नहीं है की अंग्रेज़ों ने यह छूट क्यों दी थी। शासक गाँधी के नेतर्त्व में चल रहे साझे सवतंत्रता आंदोलन के उभार से बहुत परेशान थे और ऐसे समय में सावरकर का हिन्दू-राष्ट् का नारा शासकों के लिए आसमानी वरदान था।

उन्हों ने हिंदुत्व सिद्धांत की व्याख्या शुरू करते हुवे हिंदुत्व और हिन्दू धर्म में फ़र्क़ किया।  लेकिन जबतक वे हिंदुत्व की परिभाषा पूरी करते, दोनों के बीच अंतर पूरी तरह ग़ायब हो चुका था।  हिंदुत्व और कुछ नहीं बल्कि राजनैतिक हिन्दू दर्शन बन गया था।  यह हिन्दू अलगाववाद के रूप में उभरकर सामने आगया। अपना ग्रन्थ ख़त्म करने तक सावरकर हिंदुत्व और हिन्दू धर्म का अंतर पूरी तरह भूल चुके थेजैसा की हम यहाँ देखेंगे,केवल हिन्दू भारतीय राष्ट्र का अंग थे और हिन्दू वह था जो:   
सिंधु से सागर तक फैली हुई इस भूमि को अपनी पितृभूमि मानता है, जो रक्त्त सम्बन्ध की दृष्टि से उसी महान नस्ल का वंशज है जिसका प्रथम उदभव वैदिक सप्त-सिंधुओं में हुवा था और जो निरंतर अग्रगामी होता अन्तभूर्त को पचाता तथा महानिये रूप प्रदान करती हुई हिन्दू लोगों के नाम से सुख्यात हुयी। जो उत्तराधिकार की दृष्टि से अपने आप को उसी नस्ल का स्वीकार करता है तथा उस नस्ल की उस संस्कृति को अपनी संस्कृति के रूप में मान्यता देता है जो संस्कृत भाषा में संचित है।  
राष्ट्र की इस परिभाषा के चलते सावरकर का निष्कर्ष था कि:
ईसाई और मुसलमान समुदाये जो ज़ियादा संख्या में अभी हाल तक हिन्दू थे और जो अभी अपनी पहली ही पीढ़ी में नए धर्म के अनुयायी बने हैं, भले ही हमसे साझा पितृभूमि का दावा करें और शुद्ध हिन्दू खून और मूल का दावा करें लेकिन उन्हें हिन्दू के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती कियोंकि नए पंथ को अपनाकर उन्होंने कुल मिलाकर हिन्दू संस्कृति के होने का दावा  खो दिया है। 
यह भारतीय राष्ट्र की समावेशी कल्पना और विश्वास था जिस के लिए गाँधी की हत्या की गयी। गाँधी का सब से बड़ा जुर्म यह था की वे सावरकर की हिन्दू राष्ट्रवादी रथ-यात्रा के लिए सब से बड़ा रोड़ा बन गए थे। 
गाँधी की हत्या में शामिल मुजरिमों के बारे में आज चाहे जितनी भी भ्रांतियां फैलाई जारही हौं लेकिन भारत के पहले ग्रह-मंत्री सरदार पटेल जिन से हिंदुत्व टोली गहरा बँधदुत्व परगट करती है का मत बहुत साफ़ था।  ग्रह-मंत्री के तौर पर उनका मानना था की आरएसएस और विशेषकर सावरकर और हिन्दू महासभा का  जघन्य अपराध में सीधा हाट था। उन्हों ने हिन्दू महासभा के वरिष्ठ नेता, श्यामा प्रसाद मुकर्जी को July 18, 1948लिखे पात्र में बिना किसी हिचक के लिखा:
  
जहाँ तक आरएसएस और हिन्दू महासभा की बात है,  हत्या का मामला अदालत में है और मुझे इस में इन दोनों संगठनों की भागेदारी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए। लेकिन हमें मिली रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दोनों संस्थाओं का,
खासकर आरएसएस की गत्विधिओं के फलसरूप देश में ऐसा माहौल बना कि ऐसा बर्बर कांड संभव हो सका।  मेरे दिमाग़ में कोई संदेह नहीं कि हिन्दू महासभा का अतिवादी भाग षड्यन्त्र में शामिल था। 

सरदार ने गाँधी की हत्या के 8 महीने बाद (September 19, 1948) आरएसएस के मुखिया, MS गोलवलकर को सख़्त शब्दों में लिखा:
हिन्दुओं का संगठन करना, उनकी सहायता करना एक सवाल है पर उनकी मुसीबतों का बदला, निहत्थे व लाचार औरतों, बच्चों व आदमियों से लेना दूसरा प्रशन है।  उनके अतिरिक्त यह भी था कि उन्हों ने कांग्रेस का विरोध करके और इस कठोरता से की की ना वयक्तित्व का ख़याल, न सभ्यता व विशिष्टता का ध्यान रखा, जनता में एक प्रकार की बेचैनी पैदा करदी थी।  इनकी सारी तक़रीरें सांप्रदायिक विष से भरी थीं। हिन्दुओं में जोश पैदा करना और उनकी रक्षा के प्रबंध करने के लिए यह आवश्यक ना था वह ज़हर पफैले। उस ज़हर का फल अंत में गांधीजी की अमूल्य जान की क़ुरबानी देश को सहनी पड़ी और सरकार और जनता की सहानभूति ज़रा भी आरएसएस के साथ ना रही, बल्कि उनके ख़िलाफ़  हो गई।  उनकी मृत्यु पर आरएसएस वालों ने जो हर्ष प्रकट किया था और मिठाई बांटी उस से यह विरोध और भी बढ़ गया और सरकार को इस हालत में आरएसएस के ख़िलाफ़ कार्यवाही करना ज़रूरी ही था। 

यह सच है कि गाँधी की हत्या के प्रमुख साज़िशकर्ता सावरकर बरी कर दिए गए। हालांकि यह बात आज तक समझ से बाहर है कि निचली अदालत जिस ने सावरकर को दोषमुक्त किया था उसके फ़ैसले  के खिलाफ सरकार ने हाई कोर्ट में अपील क्यों नहीं की।
सावरकर के गाँधी हत्या में शामिल होने के बारे में न्यायधीश कपूर आयोग (स्थापित 1965) ने 1969 में परस्तुत अपनी रिपोर्ट में साफ़ लिखा की वे इस में शामिल थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।  सावरकर का फ़रवरी 26, 1966 को  देहांत हो चुका था।
यह अलग बात है कि  इस सब के बावजूद सावरकर की तस्वीरें महाराष्ट्र विधान सभा और भारतीय संसद की दीवारों पर सजाई गयीं और देश के हुक्मरान पंक्तिबद्ध हो कर इन तस्वीरों पर पुष्पांजलि करते हैं। इन्ही गलियारों में सावरकर के चित्रों के साथ लटकी शहीद गाँधी की तस्वीरों पर क्या गुज़रती होगी, यह किसी ने जानने की कोशिश नहीं की है।

इस ख़ौफ़नाक यथार्थ को झुटलाना मुश्किल है कि देश में हिंदुत्व राजनीती के उभार के साथ गांधीजी की हत्या पर ख़ुशी मनाना और हत्यारों का महामंडन, उन्हें भगवन का दर्जा देने का भी एक संयोजित अभियान चलाया जा रहा है। गांधीजी की शहादत दिवस (जनवरी 30) पर गोडसे की याद में सभाएं की जाती हैं, उसके मंदिर जहाँ उसकी मूर्तियां स्थापित हैं में पूजा की जाती है। गांधीजी की हत्या को 'वध' (जिसका मतलब राक्षसों की हत्या है) बताया जाता है।
यह सब कुछ लम्पट हिन्दुत्वादी संगठनों या लोगों दुवारा ही नहीं किया जा रहा है।  मोदी के प्रधान मंत्री बनने के कुछ ही महीनों में रएसएस/भाजपा के एक वरिष्ठ विचारक, साक्षी जो संसद सदस्य भी हैं ने गोडसे को 'देश-भक्त' घोषित करने की मांग की। हालांकि उनको यह मांग विश्वव्यापी भर्त्स्ना के बाद वापिस लेनी पड़ी लेकिन इस तरह का विभत्स प्रस्ताव हिन्दुत्वादी शासकों की गोडसे के प्रति प्यार को ही दर्शाती है।
इस सिलसिले में गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के महामण्डन की सब  से शर्मनाक घटना जून 2013 में गोवा में घाटी।यहाँ पर भाजपा कार्यकारिणी की बैठक थी जिस में गुजरात के मुखयमंत्री मोदी को 2014 के संसदीय चनाव के लिए प्रधान मंत्री पद का प्रतियाशी चुना गया।  इसी दौरान वहां हिन्दुत्वादी संगठन 'हिन्दू जनजागृति समिति' जिस पर आतंकवादी कामों में लिप्त होने के गंभीर आरोप हैं का देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अखिल भारत सम्मलेन भी हो रहा था। इस सम्मलेन का श्रीगणेश मोदी के शुभकामना सन्देश से  जून 7, 2013 को हुवा।  मोदी ने अपने सन्देश में इस संगठन को "राष्ट्रीयता, देशभक्ति एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण" के लिए बधाई दी।
इसी मंच से जून 10 को हिंदुत्व संगठनों, विशेषकर आरएसएस के क़रीबी लेखक के. वी. सीतारमैया का भाषण हुवा।  उन्हों ने आरम्भ में ही घोषणा की कि "गाँधी भयानक दुष्कर्मी और सर्वाधिक पापी था"।उन्हों ने अपने  भाषण का अंत इन शर्मनाक शब्दों से किया: "जैसा की भगवन श्री कृष्ण ने कहा है-'दुष्टों के विनाश के लिए, अच्छों की रक्षा के लिए और धर्म की स्थापना के लिए, में हर युग में पैदा होता हूँ' 30 जनवरी की शाम, श्री राम, नाथूराम गोडसेके रूप में आए और गाँधी का जीवन समाप्त कर दिया"।
याद रहे आरएसएस की विचारधारा का वाहक यह वही वयक्ति है जिस ने अंग्रेजी में Gandhi was Dharma Drohi & Desa Drohi(गाँधी धर्मद्रोही और देशद्रोही था) शीर्षक से पुस्तक भी लिखी है जो गोडसे को भेंट की गयी है।

विक्की मित्तल जो भाजपा की इंदौर इकाई के प्रचार (आई टी सेल) प्रमुख हैं और जिनके सोशल मीडिया पन्नों पर प्रधान मंत्री के साथ उनके फ़ोटो सजे हुए हैं ने तो अपने ट्वीट में गोडसे के गुणगान में यह तक लिख डाला:  एक बार गोडसे जी की पिस्तौल नीलाम करके देखो तो पता चल जाएगा की देश-भक्त थे या आतंकवादी!  
गांधीजी जिन्हों ने एक आज़ाद प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष देश की कल्पना की थी और उस प्रतिबद्धता के लिए उन्हें जान भी गंवानी पड़ी थी,  हिन्दुत्वादी संगठनों के राजनितिक उभार के साथ एक राक्षसिये चरित्र के तौर पर पेश किए जा रहे हैं। नाथूराम गोडसे और उसके साथी अन्य मुजरिमों ने गांधीजी की हत्या जनवरी 30, 2018 को की थी लेकिन 72 साल के बाद भी उनके 'वध' का जशन जरी है। यह इस बात का सबूत है कि हिन्दुत्वादी टोली गांधीजी से कितना डरती  है।    

शम्सुल इस्लाम
जनवरी 30, 2020 
शम्सुल इस्लाम के अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, मराठी, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, पंजाबी, गुजराती में लेखन और कुछ वीडियो साक्षात्कार/बहस के लिए देखें :
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