देश की आज़ादी
के
अवसर
पर
आरएसएस
ने
किस
तरह
राष्ट्रीय
धवज
तिरंगे
और
जनतांत्रिक-धर्मनिर्पक्ष
भारत
के
जनम
की
भर्त्स्ना
की
थी
स्वतंत्रता
की पूर्वसंध्या पर
जब देश भर
में लोग तिरंगे
झण्डे लेकर सड़कों
पर निकले हुवे
थे और दिल्ली
में देश के
पहले प्रधान मंत्री
नेहरू इस को
आज़ादी के प्रतीक
के तौर पर
लहराने को तैयार
थे तो आरएसएस
ने अपने अंग्रेज़ी
मुखपत्र (ऑर्गनइज़र) के 14 अगस्त
सन् 1947 वाले अंक
में राष्ट्रीय ध्वज
के तौर पर
तिरंगे के चयन
की खुलकर भर्तसना
करते हुए लिखाः
"वे
लोग
जो
किस्मत
के
दांव
से
सत्ता
तक
पहुंचे
हैं
वे
भले
ही
हमारे
हाथों
में
तिरंगे
को
थमा
दें,
लेकिन
हिंदुओं
द्वारा
न
इसे
कभी
सम्मानित
किया
जा
सकेगा
न
अपनाया
जा
सकेगा।
तीन
का
आंकड़ा
अपने
आप
में
अशुभ
है
और
एक
ऐसा
झण्डा
जिसमें
तीन
रंग
हों
बेहद
खराब
मनोवैज्ञानिक
असर
डालेगा
और
देश
के
लिए
नुक़सानदेय
होगा।"
इसी 14 अगस्त 1947 वाले अंक
में जनम ले
रहे आज़ाद प्रजातान्त्रिक
और धर्म-निरपेक्ष
भारत को ज़लील
करते हुवे लिखा:
"राष्ट्रत्व
की
छद्म
धारणाओं
से
गुमराह
होने
से
हमें
बचना
चाहिए।
बहुत
सारे
दिमाग़ी
भ्रम
और
वर्तमान
एवं
भविष्य
की
परेशानियों
को
दूर
किया
जा
सकता
है
अगर
हम
इस
आसान
तथ्य
को
स्वीकारें
कि
हिंदुस्थान
में
सिर्फ
हिंदू
ही
राष्ट्र
का
निर्माण
करते
हैं
और
राष्ट्र
का
ढांचा
उसी
सुरक्षित
और
उपयुक्त
बुनियाद
पर
खड़ा
किया
जाना
चाहिए...स्वयं
राष्ट्र
को
हिंदुओं
द्वारा
हिंदू
परम्पराओं,
संस्कृति,
विचारों
और
आकांक्षाओं
के
आधार
पर
ही
गठित
किया
जाना
चाहिए।"
यहाँ यह सवाल
पूछना वाजिब होगा
की फिर आख़िर
आज आरएसएस-भाजपा
शासक इनको कियों
मान रहे हैं?
हिन्दुत्वादी यह शासक
एक ऐसे वक़्त
का इंतज़ार कर
रहे हैं जब
वे संसदीय प्रणाली
की कमज़ोरियों का
फ़ायदा उठाकर हिन्दुत्वादी
भीड़ के सहारे
तिरंगे झंडे की
जगह ज़ालिम पेशवा
राज
का गेरवा झंडा
और प्रजातान्त्रिक-धर्मनिरपेक्ष
भारत का विनाश
करके हिंदुत्व राष्ट्र
थोप देंगे। हिंदुत्व शासकों की
यह टोली आज
देश को उस
रास्ते पर लेजाना
चाहती है जिस
पर 73 साल पहले
पाकिस्तान ने एक
धार्मिक राष्ट्र के तौर
सफ़र शुरू किया
था, उस सफ़र का
किया शर्मनाक अंजाम
हुवा हम सब
के सामने है।
आइए! आज देश
के
73वें
स्वतंत्र
दिवस
पर
यह
शपथ
लें
की
हम
किसी
भी
सूरत
में
हिन्दुत्वादी
टोली
को
इस
के
राष्ट्रविरोधी
कुत्सित
मंसूबे
में
कामयाब
नहीं
होने
देंगे!
AUGUST 15, 2019.
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