देश
की सर्वोच्च न्यापालिका की पांच न्याधीशों वाली सांविधानिक पीठ, जिस में मुख्य न्यायधीश, जे एस खेहर (जो इस पीठ के अधियक्ष भी थे
और जिन का अगले शुक्रवार को कार्यकाल ख़त्म होने वाला है), न्यायधीश, एस अब्दुल नज़ीर,कुरियन जोसेफ़, आर एफ़ नरीमन और यू यू ललित शामिल थे, ने मुसलमानों के 'निजी क़ानून' के घेरे में आने वाले ट्रिपल तलाक पर एक
ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला दिया है। सर्वोच्च न्यापालिका ने 3-2
के बहुमत से ट्रिपल तलाक के चलन को ग़ैर-संविधानिक और ग़ैर- इस्लामी क़रार देते हुवे ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया है।
याद
रहे कि ट्रिपल तलाक का यह मामला इस चलन की शिकार मुस्लमान महिलाओं, शायरा बानो, आफ़रीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहाँ, अतिया साबरीऔर एक मुस्लिम महिला संगठन, 'मुस्लिम
विमेंस क्वेस्ट फॉर इक्वलिटी'
दुवारा लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई मई 11, 2017 से लगातार मई 18 तक की थी और फैसला सुरक्षित कर दिया था
(जिस का मतलब होता है की कोर्ट की पीठ आम राय बनाने की कोशिश करेगी)।आख़िरकार
ट्रिपल तलाक पर फैसला अगस्त 22, 2017 को सुना दिया गया।
इस
केस की सब से अहम बात यह थी की ट्रिपल तलाक की पीड़ित मुस्लमान बच्चियों के वकीलों
के इलावा देश की लगभग हर विचारधारा से जुड़े संगठनों ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट
के सामने अपना पक्ष रखा। यहां तक की आरएसएस के एक संगठन की और से वरिष्ठ वकील,
राम जेठमलानी पेश हुवे। कोर्ट की मदद
लिए आमंत्रित किये गए आरिफ मुहम्मद खान और सलमान खुर्शीद ने ट्रिपल तलाक के ख़िलाफ़
तर्क पेश किये और इस के चलन को ग़ैर-इस्लामी बताने के लिए क़ुरान और हदीसों के भरपूर
हवाले दिए तो 'मुस्लिम
पर्सनल लॉ बोर्ड' के
वकील कपिल सिब्बल ने जिरह करते हुवे ट्रिपल तलाक को इस्लाम का अभिन्न अंग बताया और
इसे आस्था का मामला बताते हुवे किसी भी तरह के हस्तक्षेप का विरोध किया।
प्रसिद्ध
महिला क़ानून विशषज्ञ और वकील इंद्रा जय
सिंघ ने इस केस में हस्तक्षेप करते हुवे ट्रिपल तलाक मुस्लमान महिलाओं के मानवीय
अधिकारों कालगातार होने वाला हनन बताया।
हमारे
देश की विविधता सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में भी साफ़ तोर पर देखि जा सकती है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश धर्म और जाती से परे होकर फैसला करते हैं लेकिन
सुप्रीम कोर्ट की जिस पीठ ने यह फ़ैसला
दिया है उस के बारे में कुछ रोचक हक़ीक़तें जानना ज़रूरी है। पांच मेंबर वाली बेंच में सिख, हिन्दू, मुस्लमान, ईसाई और पारसी जज थे।
ट्रिपल
तलाक मुद्दे पर पांच विभिन्न धर्मों के जज आपस में बंट गये। इस फैसले में तीन जजों
ने स्पष्ट तौर पर कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक है।
ईसाई, हिंदू
और पारसी न्यायधीशों ने इसे असवैधानिक ही नहीं बताया बल्कि न्यायधीश कुरियन जोसेफ़
ने तो अपने फैसले में ट्रिपल तलाक को क़ुरान और इस्लाम धर्म के असूलों के ख़िलाफ़ भी
बताया। उन्हों ने अपने फैसले में यह साफ़
तोर पर लिखा की "मुख्य न्यायधीश के इस तर्क से सहमत होना बहुत मुश्किल है की
ट्रिपल तलाक इस्लाम धर्म का विभिन्न अंग है।"इस तरह उनहूँ ने देश के
मुस्लमानों के उस विशाल हिस्से की समझ को मानयता प्रदान की जो यही सोच रखता है।
वहीं
मुख्य न्यायधीश जे एस खेहर एवं जस्टिस अब्दुल नजीर ने इसके पक्ष में फैसला सुनाया
है और ट्रिपल तलाक को मुस्लमानों के लिए एक मौलिक अधिकार का दर्जा देते हुवे इसे
संवैधानिक बताया।हालांकि पांचों जजों ने ट्रिपल तलाक को कुरीति बताया।
ट्रिपल
तलाक के पक्ष में जो जज थे उन्हों ने भी इसे 6 माह तक होल्ड रखते हुए सरकार से कहा की
इस के खिलाफ क़ानून लाये।
इस
तरह मामला अब सरकार के पाले में आ गया है। इस बीच, उन महिलाओं ने इसे आजादी का दिन बताया
जो इससे पीडित हैं। अब देखना होगाकि केंद्र की मोदी सरकार किस तरह इस मामले में
कानून बनाती है। सरकार को 6 माह
में कानून बनाने के लिए कहा गया है।यह सच है की यह एक ऐतिहासिक फैसला है जिस से न केवल
मुस्लमान महिलाओं का बल्कि तमाम भारतीय महिलाओं का अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का
हौसला बुलन्दतर होगा। पर इस सच्चाई को नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए की यह महज़ एक
शुरुआत है।
सव्भाविक
है की सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य अपीलकर्ता शायरा बानो इस फैसले पर खुश हौं,
हालांकि उनके साथ जो ज़ुल्म हुवा उसकी
भरपाई न हो सकेगी कियोंकी यह फ़ैसला भविष्य में लागू होगा। उन्हों ने एक बयान में
कहा "मैं इस फैसले का स्वागत करती हूँ और पूरी तरह इस से सहमत हूँ। मुस्लमान औरतों के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन है।
मुस्लिम समाज में औरतों की दशा को समझने की ज़रुरत है। इस फैसले को माना जाना चाहिए
और तुरंत क़ानूनी मानयता दी जनि चाहिए।उन के वकील, अमित सिंह चड्ढा ने इस केस में अहम
भूमिका निभायी और फैसले को देश की महिलाओं की अधिकारों की लड़ाई में एक बड़ा क़दम
बताया।
मुस्लिम
महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अधियक्षा, शाइस्ता अम्बर ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुवे देश की तमाम
औरतों की जीत बताया। उन के अनुसार यह
इस्लाम के असूलों की भी जीत है ।
सलमान
खुर्शीद जो इस केस में कोर्ट की मदद भी कर रहे थे ने इस फ़ैसले पर खुशी जताते हुवे कहा की यह बहुत उत्तम फैसला
है और हम जो चाहते थे वह आखिरकार हो गया है।नामी इतिहासकार, रामचंदर गुहा ने इस फैसले को प्रजातंत्र
की जीत बताया जिस को हासिल करने में लम्बा समय लगा।
आरएसएस/भाजपा
के नेताओं ने भी इस फैसले का खुले हाथों स्वागत किया है। प्रधान मंत्री मोदी ने एक
ट्वीट दुवारा इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया और लिखा की यह मुस्लमान औरतों को
बराबरी प्रदान करता है और उनके सशक्तिकरण में ज़बरदस्त मदद करेगा। अमित शाह ने इसे एक नए युग की शुरुआत बताते हुवेयेह उम्मीद की के अब मुसलमान
औरतें आत्म-सम्मान का जीवन बिता पाएंगी।
इस गुट के कई नेताओं ने इस फ़ैसले में भी मुसलमानों और इस्लाम की कमज़ोरी
रेखांकित करने वाला मसाला ढून्ढ लिया है। मुसलमान औरतों पर आरएसएस/भाजपा का यह
प्यार सवालों से परे नहीं है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले और बाद में और 2002
में मुस्लमान औरतों के साथ जो किया गया
वह यह देश भूला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के सामने इस केस में एक अपीलकर्ता का नाम
इशरत जहाँ है, इसी
नाम वाली लड़की को जिस तरह गुजरात में
फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारा गया उस की जाँच आज भी चल रही है। इसी तरह इस इलज़ाम से भी सब
वाक़िफ़ हैं की कैसे एक महिला क़ौसर बी से बलात्कार के बाद जला दिया गया।
इस
मामले में सब से ज़ियादा भद्द जिस की पिटी है वह है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उस
के करता-धर्ता। इन्हों ने एक अमानवीय चलन
को ग़लत मानने में 70 साल लगा दिए और इस के बावजूद इस बदचलनी को बंद नहीं कराया। इस बदचलनी का शिकार कोई और नहीं मुसलमान औरतें
ही हो रही थीं, जियादातर
नौजवान बच्चियां । शरीअत के ठेकेदारों के पास ट्रिपल तलाक़ की शिकार हज़ारूं
मुस्लमान औरतों पर शरीअत के नाम पर इस ज़ुल्म का कोई उत्तर नहीं था की जब दुनिया के लगभग सब मुसलमान
देशों ने इस ज़ालिम प्रथा को ख़त्म कर दिया है तो यह भारत में कियों लागू है और भारत
में भी सब मुसलमान इस को नहींमानते हैं। ट्रिपल तलाक़ का क़ुरान में कोई ज़िक्र नहीं
है इस के बावजूद इसे क़ुरान से भी ज़ियादा पवित्र बना दिया गया है।
इस्लाम के इन 'आलिमों' ने
इस्लाम को एक खालिस औरत विरोधी मज़हब में बदल दिया, इन के अनुसार भारत में इस्लाम का एक ही
उद्देश्य है की मुस्लमान औरतों की जान और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करना। इस्लाम सब की भलाई, इन्साफ, बराबरी और सलामती की बात करता हो,
लेकिन जहाँ तक मुसलमान औरत का सवाल है
यह सब उन के लिए नहीं हैं, इस
के हक़दार केवल मर्द हैं! सुप्रीम कोर्ट ने
अगर किसी को नंगा किया है तो वे इस्लाम के यह ढकोसले-बाज़ ठेकेदार ही हैं। भारत में इस्लाम की जो जगहँसाई हो रही हैं
यह उसके ज़िम्मेदार असली मुजरिम हैं।
शम्सुल
इस्लाम
22 अगस्त
2017
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